📜 इलाहाबाद उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय: “चरित्र प्रमाणपत्र” नहीं, केवल तथ्यात्मक ‘पूर्ववृत्त प्रमाणपत्र’ दें – लंबित आपराधिक मामलों के आधार पर सीधे इनकार नहीं किया जा सकता
📌 प्रकरण का सारांश:
दिनांक 28 मई 2025 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ (न्यायमूर्ति श्री ओम प्रकाश शुक्ला एवं न्यायमूर्ति श्री राजन रॉय) ने चरित्र प्रमाणपत्र से संबंधित 28 याचिकाओं का संयुक्त रूप से निस्तारण करते हुए राज्य सरकार एवं जिलाधिकारियों/पुलिस अधिकारियों को स्पष्ट दिशानिर्देश जारी किए हैं।
⚖️ मूल विवाद
कई याचिकाकर्ताओं ने अदालत में याचिकाएं दाखिल कर यह आरोप लगाया था कि उन्हें केवल इसलिए चरित्र प्रमाणपत्र नहीं दिया गया, क्योंकि उनके विरुद्ध लघु आपराधिक मामले लंबित हैं, चाहे वे अभी जांच स्तर पर ही क्यों न हों। इस कारण से उन्हें नौकरी, लाइसेंस या ठेका कार्य हेतु आवेदन करने में बाधा आ रही थी।
🧾 अदालत की मुख्य टिप्पणियां व आदेश
✅ 1. ‘चरित्र प्रमाणपत्र’ नहीं, ‘पूर्ववृत्त प्रमाणपत्र’ हो:
“Character cannot be certified” जैसे सामान्य वाक्य का प्रयोग अनुचित है। केवल यह उल्लेख किया जाना चाहिए कि
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कौन-कौन से आपराधिक मामले लंबित हैं
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वे किस स्तर पर हैं (जांच, आरोप पत्र, विचारण इत्यादि)
🔎 किसी की नैतिकता पर राय देना पुलिस या डीएम का कार्य नहीं, संबंधित विभाग स्वयं निर्णय करें।
✅ 2. राज्य सरकार तय प्रारूप जारी करे:
एसएसपी अम्बेडकर नगर द्वारा 11.12.2024 को जारी प्रमाणपत्र के प्रारूप को उदाहरण के रूप में स्वीकार किया गया है। न्यायालय ने गृह विभाग को निर्देश दिया है कि इसे नियमित प्रारूप के रूप में विचार करें।
✅ 3. केवल तथ्यों का उल्लेख हो:
पेंडिंग केस की धाराएं, केस नंबर, स्तर (जांच/चार्जशीट/विचारण) – इन तथ्यों का तथ्यात्मक उल्लेख किया जाए, न कि कोई व्यक्तिपरक या मान्यताप्रद टिप्पणी।
✅ 4. लघु अपराधों पर पूरी पात्रता खत्म नहीं मानी जाए:
जैसे धारा 323, 324 IPC (अब BNS की धारा 115 व 118) जैसे मामले छोटे झगड़े से जुड़ सकते हैं, जिनके चलते किसी को अयोग्य ठहराना उचित नहीं।
🧾 याचिकाओं में दिए गए निर्देश (उदाहरण)
नीचे कुछ प्रमुख याचिकाओं पर कोर्ट के आदेशों की झलक:
| याचिका संख्या | याचिकाकर्ता | निर्णय/आदेश |
|---|---|---|
| Writ-C No. 1308/2025 | राम अशीष | पहले जारी सर्टिफिकेट रद्द कर पुनः नियत प्रारूप में नया प्रमाणपत्र जारी करने का आदेश |
| Writ-C No. 2590/2025 | विजय कुमार वर्मा | बिना कोई ‘अनुशंसा’ दिए रिपोर्ट देना गलत; नियत प्रारूप में सर्टिफिकेट देने का आदेश |
| Writ-C No. 3503/2025 | ऋतेन्द्र मिश्र | एससी/एसटी एक्ट सहित मामूली धाराओं के आधार पर इनकार अनुचित, प्रमाणपत्र जारी करने का आदेश |
| Writ-C No. 3735/2025 | शैलेन्द्र कुमार अग्रहरि | जुआ अधिनियम की धारा 13 के आधार पर इनकार अनुचित माना गया |
| Writ-C No. 4288/2025 | महमूद हसन | एक मामले में एफआर दाखिल हो चुकी थी, फिर भी सर्टिफिकेट न देना गलत |
👉 सभी मामलों में संबंधित अधिकारियों को तीन सप्ताह की समय-सीमा में नया प्रमाणपत्र जारी करने का आदेश।
📌 महत्वपूर्ण निर्देश राज्य सरकार हेतु
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सभी जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक अब नियत प्रारूप में ही चरित्र/पूर्ववृत्त प्रमाणपत्र जारी करें
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जब तक राज्य सरकार इस पर अंतिम निर्णय नहीं लेती, तब तक यह व्यवस्था लागू रहे
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यदि कोई कानूनन निर्धारित प्रोफार्मा हो, तो वह प्राथमिकता पर माना जाए
📚 न्यायालय की सुझावात्मक टिप्पणी:
अदालती कार्यवाही में वकील श्री शरद पाठक द्वारा सुझाव दिया गया कि ‘चरित्र प्रमाणपत्र’ की बजाय इसका नाम ‘पूर्ववृत्त प्रमाणपत्र (Antecedent Certificate)’ होना चाहिए, ताकि किसी की संपूर्ण छवि को एक घटना के आधार पर न आँका जाए।
📌 निष्कर्ष
इस आदेश के बाद अब लंबित मामूली आपराधिक मामलों के आधार पर किसी भी नागरिक को नौकरी, व्यवसाय या लाइसेंस हेतु अयोग्य ठहराना आसान नहीं होगा। जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक की भूमिका अब महज तथ्य साझा करने तक सीमित रहेगी और अंतिम निर्णय उस विभाग का होगा जहाँ आवेदन किया गया है।
📎 निर्णय की कॉपी डाउनलोड करें:
आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके इस आदेश की PDF प्रतिलिपि डाउनलोड कर सकते हैं:
👉 डाउनलोड करें — Judgment PDF (Anil Kumar & Others v. State of U.P.)