उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक (प्रतिकूल वार्षिक गोपनीय रिपोर्टों के विरुद्ध प्रत्यावेदन और सहबद्ध मामलों का निपटारा) नियमावली, 1995[1]

1. संक्षिप्त नाम और प्रारम्भ

(1) यह नियमावली उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक (प्रतिकूल वार्षिक गोपनीय रिपोर्टों के विरुद्ध प्रत्यावेदन और सहबद्ध मामलों का निपटारा) नियमावली, 1995 कही जायेगी।

(2) यह तुरन्त प्रवृत्त होगी।

(3) यह समस्त सरकारी सेवकों पर लागू होगी।

2. अध्यारोही प्रभाव

यह नियमावली, किन्हीं अन्य नियमों या आदेशों में दी गयी कि प्रतिकूल बात के होते हुए भी, प्रभावी होगी।

3. परिभाषायें

जब तक विषय या संदर्भ में कोई प्रतिकूल बात न हो, पद-

(क) “समुचित प्राधिकारी” का तात्पर्य उस व्यक्ति, जो सरकार द्वारा, यथास्थिति प्रतिवेदक प्राधिकारी, समीक्षक प्राधिकारी या स्वीकर्ता प्राधिकारी के रूप में कार्य करने के लिए सशक्त हो, से है;

(ख) “संविधान” का तात्पर्य भारत का संविधान से है;

(ग) “सरकार” का तात्पर्य उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार से है;

(घ) “सरकारी सेवक” का तात्पर्य उस व्यक्ति, जो उच्च न्यायालय के नियंत्रण के अधीन किसी पद से भिन्न संविधान के अनुच्छेद 309 के परन्तुक के अधीन राज्यपाल की नियम बनाने की शक्ति के अधीन किसी पद पर कार्य कर रहा हो, से है;

(ङ) “रिपोर्ट” का तात्पर्य किसी सरकारी सेवक के कार्य, आचरण और सत्यनिष्ठा के सम्बन्ध में किसी समुचित प्राधिकारी, जिसने उस सरकारी सेवक का काम निरन्तर तीन मास से अन्यून अवधि तक देखा हो, द्वारा प्रत्येक वर्ष के लिए अभिलिखित वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट से है;

(च) “सचिवालय” का तात्पर्य सरकार के सचिवालय से है,

(छ) “वर्ष” का तात्पर्य किसी कलेण्डर वर्ष की पहली अप्रैल से प्रारम्भ होने वाली बारह मास की अवधि से है।

4. प्रतिकूल रिपोर्ट की संसूचना और प्रत्यावेदन के निपटाने के लिये प्रक्रिया

(1) जहाँ किसी सरकारी कर्मचारी के सम्बन्ध में रिपोर्ट पूर्णत: या अंशतः प्रतिकूल या आलोचनात्मक हो, जिसे आगे प्रतिकूल रिपोर्ट कहा गया है, तो संबंधित सरकारी कर्मचारी को स्वीकर्ता प्राधिकारी द्वारा या किसी अधिकारी द्वारा, जो प्रतिवेदक/प्राधिकारी से निम्न पंक्ति का न हो और स्वीकर्ता प्राधिकारी द्वारा उस निमित्त नाम निर्दिष्ट हो, रिपोर्ट को अभिलिखित किये जाने के दिनांक से 45 दिन की अवधि के भीतर सम्पूर्ण रिपोर्ट लिखित रूप में संसूचित की जायेगी और इस आशय का एक प्रमाण-पत्र रिपोर्ट में अभिलिखित किया जायेगा।

(2) सरकारी कर्मचारी, उपनियम (1) के अधीन प्रतिकल रिपोर्ट की संसूचना के दिनांक से 45 दिन की अवधि के भीतर, इस प्रकार संसूचित प्रतिकूल रिपोर्ट के विरुद्ध प्रत्यावेदन लिखित में सीधे और उचित माध्यम से स्वीकर्ता प्राधिकारी से एक पंक्ति ऊपर के प्राधिकारी को, जिसे आगे सक्षम प्राधिकारी कहा गया है, और यदि कोई सक्षम प्राधिकारी न हो तो स्वीकर्ता प्राधिकारी को ही कर सकता है।

परन्तु यदि, यथास्थिति, सक्षम प्राधिकारी या स्वीकर्ता प्राधिकारी का यह समाधान हो जाय कि सरकारी सेवक के पास उस अवधि के भीतर प्रत्यावेदन प्रस्तुत न कर सकने के लिये पर्याप्त कारण हैं तो वह ऐसे प्रत्यावेदन की प्रस्तुति के लिए 45 दिन की अग्रतर अवधि की अनुमति दे सकता है।

(3) यथास्थिति, सक्षम प्राधिकारी या स्वीकर्ता अधिकारी उपनियम (2) के अधीन प्रत्यावेदन की प्राप्ति के दिनांक से एक सप्ताह से अनधिक अवधि के भीतर प्रत्यावेदन को समुचित प्राधिकारी को, जिसने प्रतिकूल रिपोर्ट अभिलिखित की है, उसकी टीका-टिप्पणी के लिए भेजेगा, जो प्रत्यावेदन की प्राप्ति के दिनांक से 45 दिन से अनधिक अवधि के भीतर अपनी टीका-टिप्पणी, यथास्थिति, सक्षम प्राधिकारी या स्वीकर्ता प्राधिकारी को भेजेगा:

प्रतिबन्ध यह है कि ऐसी टीका टिप्पणी अपेक्षित नहीं होगी, यदि समुचित प्राधिकारी अपनी टीका-टिप्पणी भेजने से पहले सेवा में न रह गया हो या सेवानिवृत्त हो गया हो या निलम्बनाधीन हो।

(4) यथास्थिति सक्षम प्राधिकारी या स्वीकर्ता प्राधिकारी उपनियम (3) में विनिर्दिष्ट 45 दिन की समाप्ति के दिनांक से 120 दिन की अवधि के भीतर समुचित प्राधिकारी की टीका-टिप्पणी के साथ प्रत्यावेदन पर विचार करेगा और यदि कोई टीका-टिप्पणी प्राप्त न हुई हो तो टीका टिप्पणी की परीक्षा किये बिना-

(क) प्रत्यावेदन को निरस्त करते हुए; या

(ख) प्रतिकूल रिपोर्ट को पूर्णतः या अंशतः जैसा वह उचित समझे, निकालते हुए सकारण आदेश पारित करेगा।

(5) जहाँ सक्षम प्राधिकारी, उपनियम (4) में विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर किसी प्रशासनिक कारण से प्रत्यावेदन का निपटारा करने में असमर्थ हो तो वह इस सम्बन्ध में अपने उच्चतर प्राधिकारी को रिपोर्ट करेगा जो विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर प्रत्यावेदन के निपटारे को सुनिश्चित करने के लिए ऐसे आदेश पारित करेगा जैसा वह उचित समझे।

(6) उपनियम (4) के अधीन पारित आदेश सम्बन्धित सरकारी सेवक को लिखित रूप में संसूचित किया जायेगा।

(7) जहाँ उपनियम (4) के अधीन प्रतिकूल रिपोर्ट निकालने का आदेश पारित किया जाये वहाँ यथास्थिति, सक्षम प्राधिकारी या स्वीकर्ता प्राधिकारी इस प्रकार निकाली गयी रिपोर्ट को विलुप्त कर देगा।

(8) उपनियम (4) के अधीन पारित आदेश अंतिम होगा।

(9) जहाँ-

(एक) किसी प्रतिकूल रिपोर्ट की संसूचना;

(दो) किसी प्रतिकूल रिपोर्ट के विरुद्ध प्रत्यावेदन;

(तीन) समुचित प्राधिकारी को उसकी टीका-टिप्पणी के लिये प्रत्यावेदन के भेजे जाने;

(चार) समुचित प्राधिकारी की टीका-टिप्पणी; या

(पाँच) किसी प्रतिकूल रिपोर्ट के विरुद्ध प्रत्यावेदन के निपटारे का कोई मामला इस नियमावली के प्रारम्भ के दिनांक को लम्बित हो वहाँ ऐसे मामलों पर इस नियम के अधीन उनके लिये विहित अवधि के भीतर विचार किया जायेगा और उसका निपटारा किया जायेगा।

स्पष्टीकरण- इस उपनियम में विनिर्दिष्ट किसी मामले के लिए इस निया अवधि की संगणना करने में इस नियमावली के प्रारम्भ के दिनांक को व्यतीत हो चुकी अवधि की गणना नहीं की जायेगी।

5. रिपोर्ट का प्रतिकूल न समझा जाना

फाइनेन्शियिल हैण्ड बुक खण्ड-2, भाग-दो से चार में दिये गए उत्तर प्रदेश फण्टामेण्टल रूल्स के नियम-56 में यथा उपबन्धित के सिवाय जहाँ कोई प्रतिकूल रिपोर्ट संसूचित नहीं की जाती है या जहाँ किसी प्रतिकूल रिपोर्ट के विरुद्ध कोई प्रत्यावेदन नियम-4 के अनुसार नहीं निपटाया गया है वहाँ ऐसी रिपोर्ट को, सम्बन्धित सरकारी सेवक की पदोन्नति, दक्षतारोक पार करने और अन्य सेवा सम्बन्धी मामलों के प्रयोजनार्थ प्रतिकूल नहीं समझा जायेगा।

6. रजिस्टर का रख-रखाव

यथास्थिति सक्षम प्राधिकारी या स्वीकर्ता प्राधिकारी या इस सम्बन्ध में उसके द्वारा नाम निर्दिष्ट कोई अन्य प्राधिकारी ऐसे प्रारूप में, जैसा समय-समय सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाय, एक रजिस्टर रखेगा और समुचित प्रविष्टियाँ करेगा।

7. शास्ति

(1) जहाँ सम्बन्धित सरकारी सेवक को किसी प्रतिकूल रिपोर्ट को संसूचित करने के लिए विधिक रूप से बाध्य कोई अधिकारी या इस नियमावली के अधीन किसी प्रतिकूल रिपोर्ट के विरुद्ध किसी प्रत्यावेदन को निपटाने में विधिक रूप से सक्षम कोई अधिकारी, उसके लिये विहित अवधि के भीतर ऐसा करने में जानबूझ कर विफल रहता है, वहाँ वह कदाचार का दोषी होगा और उस पर लागू दण्ड नियमों के अनुसार दण्डनीय होगा।

(2) सचिवालय का अनुभाग अधिकारी और सचिवालय से भिन्न किसी कार्यालय का कोई प्रभारी अधिकारी या पदधारी, प्रत्यावेदन को, उस पर समुचित प्राधिकारी की टीका-टिप्पणी और अन्य सुसंगत अभिलेखों को, यदि कोई हो, उनकी प्राप्ति के तुरन्त पश्चात् यथास्थिति, सक्षम प्राधिकारी या स्वीकर्ता प्राधिकारी के समक्ष रखेगा। इस निमित्त उसकी तरफ से जानबूझकर किया गया कोई व्यतिक्रम कदाचार होगा और वह उस पर लागू दण्ड नियमों के अनुसार दण्डनीय होगा।

8. व्यावृत्ति

नियम 4 के उपनियम (9) में विनिर्दिष्ट किसी मामले के सम्बन्ध में इस नियमावली के प्रारम्भ के पूर्व की गयी कोई कार्यवाही या किया गया कोई कृत्य इस नियमावली के तत्समान उपबन्धों के अधीन की गयी कार्यवाही या किया गया कृत्य समझा जायेगा।


[1]अधिसूचना संख्या 20/1/95-का-2/1995, दिनांक 10 जुलाई, 1995