इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में प्रांतीय रक्षक दल (पीआरडी) जवानों को होमगार्ड सेवा के जवानों की भांति मानदेय भुगतान करने का निर्देश दिया है। राज्य सरकार से कहा है कि वह इस संबंध में तीन माह के अंदर आदेश जारी करे। कोर्ट ने पीआरडी जवानों से भेदभाव को संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन और राज्य सरकार का मनमाना कृत्य करार दिया। यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने राजवीर सिंह सहित अन्य पीआरडी जवानों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिया है।

याचीगण का कहना था कि उन्होंने बाकायदा प्रशिक्षण प्राप्त किया है। उन्हें उनके ही समान चयनित और लगभग एक जैसा काम करने वाले नहीं हो। होमगार्डों के बराबर मानदेय नहीं दिया जा रहा है। जैसे होमगार्ड की नियुक्ति होती है उसी प्रकार पीआरडी जवानों की होती है। हाईकोर्ट ने कहा, किसी व्यक्ति को उसकी आर्थिक मजबूरी और काम के विकल्प के अभाव में न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी पर काम करने के लिए विवश करना बंधुआ मजदूरी जैसा ही है। यह अनुच्छेद 23 के विपरीत है। कोई व्यक्ति न्यूनतम से कम मजदूरी पर काम करने के लिए तभी तैयार होता है, जब उसके पास आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करने का कोई अन्य विकल्प नहीं हो।

प्रांतीय रक्षक दल और होमगार्ड सेवाओं का गठन अलग-अलग विभागों के तहत है। उनसे सामान्य दिनों में भी होमगार्डों की तरह लोकशांति से संबंधित कार्य व सेवाएं ली जाती हैं। प्रांतीय रक्षक दल जवानों को 2013 तक 126 रुपये प्रतिदिन मानदेय मिलता रहा और होमगार्ड जवानों को 2009 तक 140 रुपये, जिसे बढ़ाकर 210 रुपये कर दिया गया। वर्तमान में होमगार्ड का मानदेय 375 रुपये प्रतिदिन से बढ़ा कर 500 रुपये कर दिया गया है।

प्रांतीय रक्षक दल के जवानों को वर्तमान में 375 रुपये प्रतिदिन ही मानदेय दिया जा रहा है। यह भेदभावपूर्ण व मनमानापूर्ण है। साथ ही संविधान के अनुच्छेद 23 का भी उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने गृह रक्षक होमगार्ड वेलफेयर एसोसिएशन के केस में होमगार्डों को पुलिस बल के जवानों को एक माह में मिलने वाले वेतन के बराबर न्यूनतम मानदेय देने का निर्देश दिया था। पीआरडी जवान भी होमगार्डों के समान ही मानदेय पाने हकदार हैं।