इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने नशे में अपने वरिष्ठ अधिकारी को अपशब्द कहने के आरोप में बर्खास्त पुलिसकर्मी को सेवा में बहाल करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि बिना गहन चिकित्सीय जांच के किसी कर्मचारी पर ड्यूटी के दौरान नशा करने का आरोप सिद्ध नही किया जा सकता। पुष्टि के लिए रक्त और यूरिन की जांच किया जाना आवश्यक है। यह फैसला न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने याची जय मंगल राम की ओर से सेवा से बर्खास्तगी आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को स्वीकार करते हुए सुनाया।
मामला वर्ष 2010 का है। याची को वाराणसी पुलिस लाइंस में तैनाती के दौरान नशे की हालत में परिसर निरीक्षक के साथ अभद्रता करने के आरोप में निलंबित किया गया था। जिसके बाद विभागीय कार्यवाही में दोषी पाए जाने पर सेवामुक्ति का आदेश दे दिया गया। याची ने राज्य प्रशासनिक सेवा न्यायाधिकरण में दंडादेश के खिलाफ अपील और पुनर्विचार याचिका दाखिल की, जो इस आधार पर खारिज कर दी गई कि याची ने ड्यूटी के दौरान नशे की हालत में अपने उच्चाधिकारी से अभद्रता की थी। जांच के दौरान पाया गया कि उसके मुंह से शराब की बदबू आ रही थी।
सेवा अधिकरण के आदेश को हाईकोर्ट ने चुनौती देते हुए याची ने दलील दी कि ड्यूटी के दौरान उनसे नशा नहीं किया था बल्कि डॉक्टर की सलाह पर आयुर्वेदिक दवा का सेवन किया था, जिसमे अल्कोहल कुछ मात्रा में मौजूद था। याची ने यह भी दलील दी कि उसकी जांच किसी चिकित्सक से वैज्ञानिक पद्धति से नही कराई। न तो उसके यूरीन की जांच करवाई गई न ही रक्त की। सरकारी वकील ने कहा कि यह अनुशासनात्मक कार्रवाई का मामला है न कि आपराधिक। जिसमें चिकित्सा जांच जरूरी हो।