उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक (अनुशासन एवं अपील) नियमावली, 1999[1]

संविधान के अनुच्छेद 309 के परन्तुक द्वारा प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करके और सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियमावली, 1930 और उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवाओं के लिए दण्ड एवं अपील नियमावली, 1932 का अधिक्रमण करके माननीय राज्यपाल निम्‍नलिखित नियमावली बनाते हैं-

1. संक्षिप्त नाम और प्रारम्भ

(1) यह नियमावली उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक (अनुशासन एवं अपील) नियमावली, 1999 कही जायेगी।

(2) यह तुरन्त प्रवृत्त होगी।

(3) यह ‘भारत का संविधान’ के अनुच्छेद 229 से आच्छादित उच्‍च न्यायालय, इलाहाबाद के अधिकारियों और कर्मचारियों के सिवाय संविधान के अनुच्छेद 309 के परन्तुक के अधीन राज्यपाल के नियम बनाने की शक्ति के अधीन सरकारी सेवकों पर लागू होगी।

2. परिभाषाएं

जब तक विषय या सन्दर्भ में कोई प्रतिकूल बात न हो, इस नियमावली में :-

(क) ‘‘नियुक्ति प्राधिकारी” का तात्पर्य सुसंगत सेवा नियमावली के अधीन पदों पर नियुक्ति करने के लिए सशक्त प्राधिकारी से है,

(ख) ‘‘संविधान का तात्पर्य” भारत का संविधान से है,

(ग) ‘‘आयोग” का तात्पर्य उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग से है,

(घ) ‘‘विभागीय जांच” का तात्पर्य इस नियमावली के नियम 7 के अधीन जांच से है,

(ङ) ‘‘अनुशासनिक प्राधिकारी” का तात्पर्य नियम 6 के अधीन शास्तियां अधिरोपित करने के लिए सशक्त किसी प्राधिकारी से है,

(च) ‘‘राज्यपाल” का तात्पर्य उत्तर प्रदेश के राज्यपाल से है,

(छ) ‘‘सरकार” का तात्पर्य उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार से है,

(ज) ‘‘सरकारी सेवक” का तात्पर्य उत्तर प्रदेश राज्य के कार्यकलापों के सम्बन्ध में लोक सेवा और पद पर नियुक्त किसी व्यक्ति से है,

(झ) ‘‘समूह क, ख, ग और घ के पदों” का तात्पर्य सुसंगत सेवा नियमावली या इस संबंध में समय-समय पर जारी सरकार के आदेशों में इस रूप में उल्लिखित पदों से है;

(ञ) ‘‘सेवा” का तात्पर्य उत्तर प्रदेश राज्य के कार्यकलापों के सम्बन्ध में लोक सेवाओं और पदों से है।

3. शास्तियां

निम्‍नलिखित शास्तियां, उपयुक्त और पर्याप्त कारण होने पर और जैसा आगे उपबन्धित है, सरकारी सेवकों पर अधिरोपित की जा सकेगी :-

[2][लघु शास्तियाँ-

(एक) परिनिन्दा,

(दो) किसी विनिर्दिष्ट अवधि के लिए वेतनवृद्धि को रोकना,

(तीन) किसी दक्षतारोध को रोकना,

(चार) आदेशों की उपेक्षा या उनका उल्लंघन करने के कारण सरकार को हुई आर्थिक हानि का पूर्णतः या अंशतः वेतन से वसूल किया जाना,

(पाँच) समूह ‘‘घ” पदों को धारण करने वाले व्यक्तियों के मामले में जुर्माना :

परन्तु यह कि ऐसे जुर्माने की धनराशि किसी भी स्थिति में, उस मास के वेतन के, जिसमें जुर्माना अधिरोपित किया गया हो, पच्‍चीस प्रतिशत से अधिक नहीं होगी।

(छ) अवचार]

दीर्घ शास्तियाँ-

(एक) संचयी प्रभाव के साथ वेतन वृद्धि को रोकना,

(दो) किसी निम्‍नतर पद या श्रेणी या समय वेतनमान या किसी समय वेतनमान में निम्‍नतर प्रक्रम पर अवनति करना,

(तीन) सेवा से हटाना जो भविष्य में नियोजन से निरर्हित नहीं करता हो,

(चार) सेवा से पदच्युत जो भविष्य में नियोजन से निरर्हित करता हो।

स्पष्टीकरण:-इस नियम के अर्थ के अन्तर्गत निम्‍नलिखित को शास्ति की कोटि में नहीं माना जाएगा, अर्थात्:-

(एक) किसी विभागीय परीक्षा उत्तीर्ण करने पर विफल रहने पर या सेवा को शासित करने वाले नियमों या आदेशों के अनुसार किसी अन्य शर्त को पूरा करने में विफल रहने पर किसी सरकारी सेवक की वेतनवृद्धि का रोकना,

(दो) दक्षतारोक पार करने के लिए उपयुक्त न पाए जाने के कारण समय वेतनमान में दक्षतारोक पर वेतन का रुक जाना।

(तीन) सेवा मे परिवीक्षा पर नियुक्त किसी व्यक्ति का परिवीक्षा अवधि के दौरान या उसकी समाप्ति पर नियुक्ति के निबन्धन या ऐसी परिवीक्षा को शासित करने वाले नियमों या आदेशों के अनुसार सेवा में प्रतिवर्तन,

(चार) परिवीक्षा पर नियुक्त किसी व्यक्ति की परिवीक्षा अवधि के दौरान या उसकी समाप्ति पर सेवा के निबंधन या ऐसी परिवीक्षा को शासित करने वाले नियमों और आदेशों के अनुसार सेवा का पर्यवस्यन।

4. निलम्बन

(1) कोई सरकारी सेवक जिसके आचरण के विरुद्ध कोई जांच अनुध्यात है या उसकी कार्यवाही चल रही है, नियुक्ति प्राधिकारी के विवेक पर जांच की समाप्ति के लम्बित रहने तक, निलम्बन के अधीन रखा जा सकेगा :

प्रतिबन्ध यह है कि निलम्बन तब तक पुनः स्थापित नहीं करना चाहिए जब तक कि सरकारी सेवक के विरुद्ध अभिकथन इतने गम्भीर न हों कि उनके स्थापित हो जाने की दशा में सामान्यतः दीर्घ शास्ति का समुचित आधार हो सकता हो :

अग्रतर प्रतिबन्ध यह है कि राज्यपाल द्वारा इस निमित्त जारी आदेश द्वारा सशक्त सम्बन्धित विभागाध्यक्ष समूह “क” और “ख” पदों के सरकारी सेवक या सरकारी सेवकों के वर्ग को इस नियम के अधीन निलम्बित कर सकेगा :

परन्तु यह और भी कि समूह “ग” और “घ” के पदों के किसी सरकारी सेवक या सरकारी सेवकों के वर्ग के मामले में नियुक्ति प्राधिकारी अपनी शक्ति इस नियम के अधीन अपने ठीक निम्‍नतर प्राधिकारी को प्रत्यायोजित कर सकेगा।

(2) कोई सरकारी सेवक, जिसके सम्बन्ध में या जिसके विरुद्ध किसी अपराधिक आरोप से सम्बन्धित कोई अन्वेषण, जांच या विचारण, जो सरकारी सेवक के रूप में उसकी स्थिति से संबंधित है या जिससे उसके कर्तव्यों के निर्वहन करने में संकट उत्पन्‍न होने की सम्भावना हो या जिसमें नैतिक अधमता अन्तर्ग्रस्त है, लम्बित हो, नियुक्ति प्राधिकारी या ऐसे प्राधिकारी द्वारा, जिसे इस नियमावली के अधीन निलम्बित करने की शक्ति प्रत्यायोजित की गई हो उसके विवेक पर तब तक निलंबित रखा जा सकेगा जब तक कि उस आरोप से संबंधित समस्त कार्यवाहियां समाप्त न हो जायें।

(3) (क) कोई सरकारी सेवक यदि वह अड़तालिस घंटे से अधिक की अवधि के लिए अभिरक्षा में निरुद्ध किया गया हो, चाहे निरोध आपराधिक आरोप पर या अन्यथा किया गया हो निलंबित करने के लिए सक्षम प्राधिकारी के आदेश द्वारा निरोध के दिनांक से यथास्थिति निलम्बन के अधीन रखा गया या निरन्तर रखा गया समझा जायेगा।

(ख) उपर्युक्त सरकारी सेवक अभिरक्षा से निर्मुक्त किये जाने के पश्चात् अपने निरोध के बारे में सक्षम प्राधिकारी को लिखित रूप में सूचित करेगा और समझे गये निलम्बन के विरुद्ध अभ्यावेदन भी कर सकेगा। सक्षम प्राधिकारी मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के साथ-साथ इस नियम में दिये गये उपबन्धों के प्रकाश में अभ्यावेदन पर विचार करने के पश्‍चात् अभिरक्षा से निर्मुक्त होने के दिनांक से समझे गये निलम्बन को जारी रखने या उसका प्रतिसंहरण या उपान्तरण करने के लिए समुचित आदेश पारित करेगा।

(4) कोई सरकारी सेवक उसके सिद्धदोष ठहराये जाने के दिनांक से, यदि किसी अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराये जाने के कारण उसे अड़तालिस घण्टे से अधिक अवधि के कारावास की सजा दी गई है और उसे ऐसे सिद्धि‍दोष के फलस्वरूप तत्काल पदच्युत नहीं किया गया है या हटाया नहीं गया है, तो इस नियमावली के अधीन निलम्बन के लिए सक्षम प्राधिकारी के किसी आदेश से, यथास्थिति, निलम्बन के अधीन रखा गया या निरन्तर रखा गया समझा जायेगा।

स्पष्टीकरण-उस उपनियम में निर्दिष्ट अड़तालीस घंटे की अवधि की गणना सिद्धदोष ठहराये जाने के पश्चात् और इस प्रयोजन के लिए कारावास की आन्तरायिक कालावधियों को, यदि कोई हो, ध्यान में रखा जायेगा।

(5) जहां किसी सरकारी सेवक पर आरोपित पदच्युत या सेवा से हटाये जाने की शास्ति को इस नियमावली या इस नियमावली द्वारा विखण्डित नियमावली के अधीन अपील में या पुनर्विलोकन में अपास्त कर दिया जाय और मामले की अग्रतर जांच या कार्यवाही के लिए किसी अन्य निर्देशों के साथ प्रेषित कर दिया जाय वहां-

(क) यदि वह शास्ति दिये जाने के ठीक पूर्व निलम्बन के अधीन था, तो उसके निलम्बन के आदेश को, उपर्युक्त किन्हीं ऐसे निर्देशों के अध्यधीन रहते हुए, पदच्युति या हटाने के मूल आदेश के दिनांक को और से, निरन्तर प्रवृत्त हुआ समझा जायगा,

(ख) यदि वह निलम्बन के अधीन नहीं था, तो यदि उसे अपील या पुनरीक्षण करने वाले प्राधिकारी द्वारा इस प्रकार निदेशित किया जाय, पदच्युति‍ या हटाने के मूल आदेश को और से नियुक्ति प्राधिकारी के आदेश से निलम्बन के अधीन रखा समझा जायगाः

प्रतिबन्ध यह है कि इस उपनियम में किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जायगा कि वह ऐसे मामले में जहां किसी सरकारी सेवक पर पदच्युति या सेवा से हटाये जाने की अधिरोपित शास्ति को इस नियमावली के अधीन किसी अपील या पुनरीक्षण में, उन अभिकथनों के, जिन पर शास्ति अधिरोपित की गयी थी, गुणों से भिन्‍न आधार पर अपास्त कर दिया गया हो, किन्तु मामले की अग्रतर जांच या कार्यवाही के लिए या किन्हीं अन्य निदेशों के साथ प्रेषित कर दिया गया हो, उन अभिकथनों पर उसके विरुद्ध अग्रतर जांच लम्बित रहते हुए निलम्बन आदेश, इस प्रकार कि उसका भूतलक्षी प्रभाव नहीं होगा, पारित करने की अनुशासनिक प्राधिकारी की शक्ति को प्रभावित करता है।

(6) जहां किसी सरकारी सेवक पर आरोपित पदच्युति या सेवा से हटाने की शास्ति को किसी विधि न्यायालय के विनिश्‍चय या परिणामस्वरूप अपास्त कर दिया जाय या शून्य घोषित कर दिया जाय या शून्य कर दिया जाय और नियुक्ति प्राधिकारी मामले की परिस्थितियों पर विचार करने पर, उसके विरुद्ध उन अभिकथनों, जिन पर पदच्युति या हटाने की शास्ति मूलरूप में आरोपित की गयी थी, अग्रतर जांच करने का विनिश्‍चय करता हो, चाहे वे अभिकथन अपने मूल में रहे या उन्हें स्पष्ट कर दिया जाय या उनके विवरणों को और अच्छी तरह विनिर्दिष्ट कर दिया जाय या उनके किसी छोटे भाग का लोप कर दिया जाय, वहां-

(क) यदि वह शास्ति दिये जाने के ठीक पूर्व निलम्बन के अधीन था, तो उसके निलम्बन के आदेश को नियुक्ति प्राधिकारी के किसी निदेश के अध्यधीन रहते हुए पदच्युति या हटाने के मूल आदेश के दिनांक की ओर से निरन्तर प्रवृत्त हुआ समझा जायगा।

(ख) यदि वह निलम्बन के अधीन नहीं था तो उसे यदि नियुक्ति प्राधिकारी द्वारा इस प्रकार निदेशित किया जाय, पदच्युति या हटाने के मूल आदेश के दिनांक को और से सक्षम प्राधिकारी के किसी आदेश द्वारा निलम्बन के अधीन रखा गया समझा जायगा।

(7) जहां कोई सरकारी सेवक (चाहे किसी अनुशासनिक कार्यवाही के सम्बन्ध में या अन्यथा) निलम्बित कर दिया जाय या निलम्बित किया गया समझा जाय और कोई अन्य अनुशासनिक कार्यवाही उस निलम्बन के दौरान उसके विरुद्ध प्रारम्भ कर दी जाय, वहां निलम्बित करने के लिए सक्षम प्राधिकारी अभिलिखित किये जाने वाले कारणों से यह निदेश दे सकेगा कि सरकारी सेवक तब तक निलम्बित बना रहेगा जब तक ऐसी समस्त या कोई कार्यवाही समाप्त न कर दी जाय।

(8) इस नियम के अधीन दिया गया या दिया गया समझा गया या प्रवृत्त बना हुआ कोई निलम्बन आदेश तब तक प्रवृत्त बना रहेगा जब तक कि सक्षम प्राधिकारी द्वारा उसे उपान्तरित या प्रतिसंहत न कर दिया जाय।

(9) इस नियम के अधीन निलम्बन के अधीन समझा गया कोई सरकारी सेवक फाइनेंशियल हैण्ड बुक, खण्ड-दो-भाग दो से चार के फण्डामेन्टल रूल 53 के उपबन्धों के अनुसार उपादान भत्ता पाने का हकदार होगा।

5. निलम्बन अवधि में वेतन और भत्ते आदि

इस नियमावली के अधीन यथास्थिति विभागीय जांच या आपराधिक मामले के आधार पर आदेश पारित हो जाने के पश्‍चात् संबंधित सरकारी सेवक के वेतन और भत्तों के बारे में वि‍निश्‍चय और उक्‍त अवधि को ड्यूटी पर बिताया गया माना जायेगा अथवा नहीं, पर विचार करते हुए उक्त सरकारी सेवक को नोटिस देकर फाइनेंशियल हैण्डबुक, खण्ड दो, भाग-दो से चार के नियम-54 के अधीन विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर स्पष्टीकरण मांगने के पश्‍चात् अनुशासनिक प्राधिकारी द्वारा किया जायेगा।

6. अनुशासनिक प्राधिकारी

किसी सरकारी सेवक का नियुक्ति प्राधिकारी उसका अनुशासनिक प्राधिकारी होगा जो इस नियमावली के उपबन्धों के अध्यधीन रहते हुए उस पर नियम 3 में विनिर्दिष्ट शास्तियों में कोई शास्ति अधिरोपित कर सकेगाः

प्रतिबन्ध यह है कि किसी व्यक्ति को किसी ऐसे प्राधिकारी द्वारा, जो उसके अधीनस्थ हो, जिसके द्वारा उसकी वास्तविक रूप से नियुक्ति की गयी थी, पदच्युत या हटाया नहीं जायगाः

अग्रतर प्रतिबन्ध यह है कि उत्तर प्रदेश श्रेणी-दो सेवा (लघु शास्तियों का आरोपण) नियमावली, 1973 के अधीन अधिसूचित विभागाध्यक्ष इस नियमावली के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, इस नियमावली के नियम 3 में उल्लिखित लघु शास्तियां अधिरोपित करने के लिए सशक्त होगाः

प्रतिबन्ध यह भी है कि इस नियमावली के अधीन राज्य सरकार अधिसूचित आदेश द्वारा समूह “ग” और “घ” के पदों के किसी सरकारी सेवक के मामले में पदच्युति‍ या सेवा से हटाये जाने के सिवाय किसी भी शास्ति को अधिरोपित करने की शक्ति को नियुक्ति प्राधिकारी के अधीनस्थ किसी प्राधिकारी को ऐसी शर्तों के अध्यधीन रहते हुए जैसी उसमें निहित की जाय, प्रत्यायोजित कर सकती है।

7. दीर्घ शास्तियां अधिरोपित करने के लिए प्रक्रिया

किसी सरकारी सेवक पर कोई दीर्घ शास्ति अधिरोपित करने के पूर्व निम्‍नलिखित रूप से जांच की जायेगी :-

(एक) अनुशासनिक प्राधिकारी स्वयं आरोपों की जांच कर सकता है या अपने अधीनस्थ किसी प्राधिकारी को आरोपों की जांच करने के लिए जांच अधिकारी के रूप में नियुक्त कर सकता है।

(दो) अवचार के ऐसे तथ्यों की जिन पर कार्यवाही का किया जाना प्रस्तावित हो, निश्‍चि‍त आरोप या आरोपों के रूप में रूपान्तरित किया जायेगा जिसे आरोप-पत्र कहा जायगा। आरोप-पत्र अनुशासनिक प्राधिकारी द्वारा अनुमोदित और हस्ताक्षर किया जायगाः

प्रतिबन्ध यह है कि जहां नियुक्ति प्राधिकारी राज्यपाल हो, वहां आरोप-पत्र सम्बन्धित विभाग के यथास्थिति, प्रमुख सचिव या सचिव द्वारा अनुमोदित किया जा सकेगा।

(तीन) विरचित आरोप इतने संक्षिप्त और स्पष्ट होंगे जिससे आरोपित सरकारी सेवक के विरुद्ध तथ्यों और परिस्थितियों के पर्याप्त उपदर्शन हो सकें। आरोप-पत्र में प्रस्तावित दस्तावेजी साक्ष्यों और उसे सिद्ध करने के लिए प्रस्तावित गवाहों के नाम मौखिक साक्ष्यों के साथ, यदि कोई हो, आरोप-पत्र में उल्लिखित किये जायेंगे।

(चार) आरोपित सरकारी सेवक से यह अपेक्षा की जायेगी कि वह किसी विनिर्दिष्ट दिनांक को, जो आरोप-पत्र के जारी होने के दिनांक से 15 दिन से कम नहीं होगा, व्यक्तिगत रूप से अपनी प्रतिरक्षा में एक लिखित कथन प्रस्तुत करे और यह कथन करे कि आरोप-पत्र में उल्लिखित किसी साक्षी की प्रतिपरीक्षा करना चाहता है और क्या वह अपनी प्रतिरक्षा में साक्ष्य देना या प्रस्तुत करना चाहता है। उसको यह भी सूचित किया जायेगा कि विनिर्दिष्ट दिनांक को उसके उपस्थित न होने या लिखित कथन दाखिल न करने की दशा में यह उपधारणा की जायेगी कि उसके पास करने के लिए कुछ नहीं है और जांच अधिकारी एकपक्षीय जांच करने की कार्यवाही करेगा।

(पांच) आरोप-पत्र, उसमें उल्लिखित दस्तावेजी साक्ष्यों की प्रति और साक्षियों की सूची और उनके कथन, यदि कोई हों, के साथ आरोपित सरकारी सेवक को व्यक्तिगत रूप से या रजिस्ट्रीकृत डाक द्वारा कार्यालय अभिलेखों में उल्लिखित पते पर तामील की जायेगी, उपर्युक्त रीति से आरोप-पत्र तामील न कराये जा सकने की दशा में आरोप-पत्र को व्यापक परिचालन वाले किसी दैनिक समाचार-पत्र में प्रकाशन द्वारा तामील कराया जायेगाः

प्रतिबन्ध यह है कि जहां दस्तावेजी साक्ष्य विशाल हो वहां इसकी प्रति आरोप-पत्र के साथ प्रस्तुत करने के बजाय, आरोपित सरकारी सेवक को उसे जांच अधिकारी के समक्ष निरीक्षण करने की अनुज्ञा दी जायेगी।

(छः) जहाँ आरोपित सरकारी सेवक उपस्थित होता है और आरोपों को स्वीकार करता है, वहां जांच अधिकारी ऐसी अभिस्वीकृति के आधार पर अपनी रिपोर्ट अनुशासनिक प्राधिकारी को प्रस्तुत करेगा।

(सात) जहाँ आरोपित सरकारी सेवक आरोपों को इनकार करता है, वहां जांच अधिकारी आरोप-पत्र में प्रस्तावित साक्षी को बुलाने की कार्यवाही करेगा और आरोपित सरकारी सेवक की उपस्थिति में जिसे ऐसे साक्षियों की प्रतिपरीक्षा का अवसर दिया जायेगा, उनके मौखिक साक्ष्य को अभिलिखित करेगा। उपर्युक्त साक्ष्यों को अभिलिखित करने के पश्‍चात् जांच अधिकारी उस मौखिक साक्ष्य को मांगेगा और उसे अभिलिखित करेगा जिसे आरोपित सरकारी सेवक ने अपनी प्रतिरक्षा में अपने लिखित कथन में प्रस्तुत करना चाहा थाः

प्रतिबन्ध यह है कि जांच अधिकारी ऐसे कारणों से जो लिखित रूप में अभिलिखित किये जायेंगे, किसी साक्षी को बुलाने से इन्कार कर सकेगा।

(आठ) जांच अधिकारी उत्तर प्रदेश विभागीय जांच (साक्षियों को हाजिर होने और दस्तावेज पेश करने के लिए बाध्य करना) अधिनियम, 1976 के उपबन्धों के अनुसार अपने समक्ष किसी साक्षी को साक्ष्य देने के लिए बुला सकेगा या किसी व्यक्ति से दस्तावेज प्रस्तुत करने की अपेक्षा कर सकेगा।

(नौ) जांच अधिकारी सत्य का पता लगाने या आरोपों से सुसंगत तथ्यों का उचित प्रमाण प्राप्त करने की दृष्टि से किसी भी समय, किसी साक्षी से या आरोपित व्यक्ति से, कोई भी प्रश्‍न, जो वह चाहे, पूछ सकता है।

(दस) जहाँ आरोपित सरकारी सेवक जांच में किसी नियत दिनांक पर या कार्यवाही के किसी भी स्तर पर उसे सूचना तामील किये जाने या दिनांक की जानकारी रखने के बावजूद उपस्थित नहीं होता है तो, जांच अधिकारी एकपक्षीय जांच की कार्यवाही करेगा। ऐसे मामले में जांच अधिकारी, आरोपित सरकारी सेवक की अनुपस्थिति में, आरोप-पत्र में उल्लिखित साक्षियों के कथन को अभिलिखित करेगा।

(ग्यारह) अनुशासनिक प्राधिकारी यदि वह ऐसा करना आवश्यक समझता हो, आदेश द्वारा उसकी ओर से आरोप के समर्थन में मामले को प्रस्तुत करने के लिए किसी सरकारी सेवक या विधि व्यवसायी को, जिसे प्रस्तुतकर्ता अधिकारी कहा जायेगा, नियुक्त कर सकता है।

(बारह) सरकारी सेवक अपनी ओर से मामले को प्रस्तुत करने के लिए किसी अन्य सरकारी सेवक की सहायता ले सकता है किन्तु इस प्रयोजन के लिए किसी विधिक व्यवसायी की सेवा तब तक नहीं ले सकता है जब तक अनुशासनिक प्राधिकारी द्वारा नियुक्त प्रस्तुतकर्ता अधिकारी कोई विधि व्यवसायी न हो या अनुशासनिक प्राधिकारी, मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए ऐसी अनुज्ञा न दे दिया होः-

प्रतिबन्ध यह है कि यह नियम निम्‍नलिखित मामलों में लागू नहीं होगाः-

(एक) जहां किसी व्यक्ति पर कोई दीर्घ शास्ति ऐसे आचरण के आधार पर अधिरोपित की गयी हो जो किसी आपराधिक आरोप पर उसे सिद्धदोष ठहराए, या

(दो) जहां अनुशासनिक प्राधिकारी का ऐसे कारणों से जो उसके द्वारा लिखित रूप में अभिलिखित किये जायेंगे, यह समाधान हो जाता है कि इस नियमावली में उपबन्धित रीति से जांच करना युक्तियुक्त रूप से व्यवहारिक नहीं है, या

(तीन) जहां राज्यपाल का यह समाधान हो जाय कि राज्य की सुरक्षा के हित में इस नियमावली में उपबन्धित रीति से जांच किया जाना समीचीन नहीं है।

8. जांच रिपोर्ट का प्रस्तुत किया जाना

जांच पूरी हो जाने पर जांच अधिकारी जांच के समस्त अभिलेखों के साथ अपनी जांच रिपोर्ट अनुशासनिक प्राधिकारी को प्रस्तुत करेगा। जांच रिपोर्ट में संक्षिप्त तथ्यों का पर्याप्त अभिलेख, साक्ष्य और प्रत्येक आरोप पर निष्कर्ष का विवरण और उसके कारण अन्तर्विष्ट होंगे। जांच अधिकारी शास्ति के बारे में कोई संस्तुति नहीं करेगा।

9. जांच रिपोर्ट पर कार्यवाही

(1) अनुशासनिक प्राधिकारी सरकारी सेवक को सूचना देते हुए ऐसे कारणों से जो लिखित रूप में अभिलिखित किये जायेंगे, मामला पुनः जांच के लिए उसी या किसी अन्य जांच अधिकारी को प्रेषित कर सकेगा। तदुपरान्त जांच अधिकारी उस स्तर से जिससे अनुशासनिक प्राधिकारी द्वारा निर्देशित किया गया हो, नियम-7 के उपबन्धों के अनुसार जांच की कार्यवाही करेगा।

(2) अनुशासनिक प्राधिकारी, यदि वह किसी आरोप के निष्कर्ष पर जांच अधिकारी से असहमत हो तो उस अभिलिखित किये जाने वाले कारणों से अपने निष्कर्ष को अभिलिखित करेगा।

(3) आरोप सिद्ध न होने की दशा में अनुशासनिक प्राधिकारी द्वारा आरोपित सरकारी सेवक को आरोपों से विमुक्त कर दिया जायेगा और तदनुसार उसे सूचित कर दिया जायगा।

(4) यदि समस्त या किन्हीं आरोपों के निष्कर्षों को ध्यान में रखते हुए अनुशासनिक की यह राय हो कि नियम 3 में विनिर्दिष्ट कोई शास्ति आरोपित सरकारी सेवक पर अधिरोपित होनी चाहिए तो वह उपनियम (2) के अधीन जांच रिपोर्ट और उसके अभिलिखित निष्कर्षों की एक प्रति आरोपित सरकारी सेवक को देगा और उससे उसका अभ्यावेदन, यदि वह ऐसा चाहता हो, एक युक्तियुक्त विनिर्दिष्ट समय के भीतर प्रस्तुत करने की अपेक्षा करेगा। अनुशासनिक प्राधिकारी जांच और आरोपित सरकारी सेवक के अभ्यावेदन से संबंधित समस्त सुसंगत अभिलेखों को ध्यान में रखते हुए, यदि कोई हो, और इस नियमावली के नियम 16 के उपबन्धों के अधीन रहते हुए इस नियमावली के नियम 3 में उल्लिखित एक या अधिक शास्तियां अधिरोपित करते हुए एक युक्ति संगत आदेश पारित करेगा और उसे आरोपित सरकारी सेवक को संसूचित करेगा।

[3][10. लघु शास्तियां अधिरोपित करने के लिए प्रक्रिया

(1) जहां अनुशासनिक प्राधिकारी का समाधान हो जाय कि ऐसी प्रक्रिया को अंगीकार करने के लिए समुचित और पर्याप्त कारण हैं, वहां वह उपनियम (2) के उपबन्धों के अध्यधीन रहते हुए नियम 3 में उल्लिखित एक या अधिक लघु शास्तियां अधिरोपित कर सकेगा।

(2) सरकारी सेवक को उसके विरूद्ध अभ्यारोपणों का सार सूचित किया जायेगा और उससे एक युक्तियुक्त समय के भीतर अपना स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने की अपेक्षा की जायेगी। अनुशासनिक अधिकारी उक्त स्पष्टीकरण, यदि कोई हो, और सुसंगत अभिलेखों पर विचार करने के पश्‍चात् ऐसे आदेश जैसा वह उचित समझता है, पारित करेगा और जहां कोई शास्ति अधिरोपित की जाय वहां उसके कारण दिये जायेंगे। आदेश सम्बन्धित सरकारी सेवक को संसूचित किया जायेगा।

(3) यदि किसी कर्मचारी के विरूद्ध यौन शोषण या यौन उत्पीड़न की शिकायत कार्य स्थल के प्रभारी सहित नियुक्ति प्राधिकारी को की जाती है और यदि नियुक्ति प्राधिकारी जांच के प्रयोजनार्थ एक शिकायत समिति (जिसमें एक महिला सदस्य का होना अनिवार्य होगा) गठित करता है तो ऐसी शिकायत समिति की रिपोर्ट/निष्कर्ष को जांच रिपोर्ट माना जायेगा और नियुक्ति प्राधिकारी ऐसी रिपोर्ट के आधार पर अपचारी सरकारी सेवक पर लघु शास्ति आरोपित कर सकता है और एक पृथक जांच संस्थित करने की आवश्यकता नहीं होगी।]

11. अपील

(1) इस नियमावली के अधीन राज्यपाल द्वारा पारित आदेश के सिवाय सरकारी सेवक अनुशासनिक प्राधिकारी द्वारा पारित किसी आदेश की अपील अगले उच्‍चतर प्राधिकारी को करने का हकदार होगा।

(2) अपील, अपील प्राधिकारी को संबोधित और प्रस्तुत की जायगी। यदि कोई सरकारी सेवक अपील करेगा तो वह उसे अपने नाम से प्रस्तुत करेगा। अपील में ऐसे समस्त तात्विक कथन और तर्क होंगे जिन पर अपीलार्थी भरोसा करता हो।

(3) अपील में किसी असंयमित भाषा का प्रयोग नहीं किया जायेगा। कोई अपील, जिसमें ऐसी भाषा का प्रयोग किया जाय, सरसरी तौर पर खारिज की जा सकेगी।

(4) अपील आक्षेपित आदेश की संसूचना के दिनांक से 90 दिन के भीतर प्रस्तुत की जायगी। उक्त अवधि के पश्चात की गयी कोई अपील सरसरी तौर पर खारिज कर दी जायेगी।

12. अपील पर विचार

अपील प्राधिकारी निम्‍नलिखित पर विचार करने के पश्चात अपील में इस नियमावली के नियम 13 के खण्ड (क) से (घ) में यथा उल्लिखित ऐसा आदेश पारित करेगा, जैसा वह उचित समझे-

(क) क्या ऐसे तथ्य जिन पर आदेश आधारित था, स्थापित किये जा चुके हैं,

(ख) क्या स्थापित किये गये तथ्य कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार प्रदान करते हैं, और

(ग) क्या शास्ति अत्यधिक, पर्याप्त या अपर्याप्त है।

13. पुनरीक्षण

इस नियमावली में किसी बात के होते हुए भी, सरकार स्वप्रेरणा से या संबंधित सरकारी सेवक के अभ्यावेदन पर किसी ऐसे मामले के अभिलेख को मंगा सकेगी जिसका विनिश्चय उसके अधीनस्थ किसी प्राधिकारी द्वारा इस नियमावली द्वारा प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करके किया गया हो और

(क) ऐसे प्राधिकारी द्वारा पारित आदेश की पुष्टि कर सकेगी, उसका उपान्तर कर सकेगी या उसे उलट सकेगी, या

(ख) निदेश दे सकेगी कि मामले में अग्रतर जांच की जाय, या

(ग) आदेश द्वारा अधिरोपित दण्ड को कम कर सकेगी या उसमें वृद्धि कर सकेगी, या

(घ) मामले में ऐसा अन्य आदेश दे सकेगी जैसा वह उचित समझे।

14. पुनर्विलोकन

राज्यपाल यदि उसके संज्ञान में यह बात लाई गयी हो कि आक्षेप आदेश पारित करते समय कोई ऐसी नई सामग्री या साक्ष्य को पेश न किया जा सका था या वह उपलब्ध नहीं था या विधि की कोई ऐसी तात्विक त्रुटि हो गयी थी जिसका प्रभाव मामले की प्रकृति को परिवर्तित करता हो, तो वह किसी भी समय स्वप्रेरणा से या संबंधित सरकारी सेवक के अभ्यावेदन पर इस नियमावली के अधीन अपने द्वारा पारित किसी आदेश का पुनर्विलोकन कर सकेगा।

15. शास्ति अधिरोपित करने या वृद्धि करने के पूर्व अवसर

नियम 12, 13 और 14 के अधीन शास्ति अधिरोपित करने या उसमें वृद्धि करने का कोई आदेश तब तक नहीं किया जायेगा जब तक कि संबंधित सरकारी सेवक को प्रस्तावित यथास्थिति, अधिरोपित करने या वृद्धि करने के विरुद्ध कारण बताने का युक्तियुक्त अवसर न दिया गया हो।

16. आयोग से परामर्श

इस नियमावली के अधीन राज्यपाल द्वारा किसी आदेश के पारित किये जाने के पूर्व समय-समय पर यथासंशोधित उत्तर प्रदेश लोक सेवा (कृत्यों का परिसीमन) विनियम, 1954 के अधीन यथा अपेक्षित आयोग से भी परामर्श किया जायेगा।

17. विखण्डन और व्यावृत्ति

(1) सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियमावली, 1930 और उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवाओं के लिए दण्ड एवं अपील नियमावली, 1932 एतद्द्वारा विखण्डित की जाती है।

(2) ऐसे विखण्डन के होते हुए भी-

(क) उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवाओं के लिए दण्ड एवं अपील नियमावली, 1932 में उल्लिखित शक्तियों का प्रत्यायोजन और सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियमावली, 1930 या उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवाओं के लिए दण्ड एवं अपील नियमावली, 1932 के अधीन जारी किया गया कोई ऐसा आदेश जिसमें किसी प्राधिकारी की नियम 3 में उल्लिखित किन्हीं शास्तियों को अधिरोपित करने की शक्ति या निलम्बन की शक्ति प्रत्यायोजित की गयी हो, इस नियमावली के अधीन जारी किया गया समझा जायेगा और तब तक विधिमान्य रहेगा जब तक कि उसे रद्द या विखंडित न  कर दिया जाय,

(ख) इस नियमावली के प्रवृत्त होने के दिनांक को लम्बित कोई जांच, अपील, पुनरीक्षण या पुनर्विलोकन जारी रहेगा और इस नियमावली के उपबन्धों के अधीन निर्णीत किया जायगा,

(ग) इस नियमावली की कोई बात किसी व्यक्ति को किसी अपील, पुनरीक्षण या पुनर्विलोकन के ऐसे अधिकार के प्रवर्तन से वंचित नहीं करेगी जो उसे इस नियमावली के प्रारम्भ होने के पूर्व किसी पारित आदेश के सम्बन्ध में इस नियमावली के प्रवर्तन न होने पर प्राप्त होते और इस नियमावली के प्रारम्भ के पूर्व पारित किसी आदेश के सम्बन्ध में अपील, पुनरीक्षण या पुनर्विलोकन को इस नियमावली के अधीन दाखिल की जायेगी और तद्नुसार निस्तारित की जायेगी, मानो इस नियमावली के उपबन्ध सभी सारवान समय पर प्रवृत्त थे।

Footnotes

[1] अधिसूचना संख्याः 13/9/98-का-1-99, दिनांक 9 जून, 1999, जो उ0प्र0 असाधारण गजट, भाग 4 में दिनांक 9 जून, 1999 को प्रकाशित। 

[2] अधिसूचना संख्याः 77/संख्या-13/9/98-का-1-2014, दिनांक 8 अगस्त, 2014 द्वारा प्रस्थापित।

[3] अधिसूचना संख्याः 77/संख्या-13/9/98-का-1-2014, दिनांक 8 अगस्त, 2014 द्वारा प्रस्थापित।