उत्तर प्रदेश सरकारी कर्मचारी आचरण नियमावली, 19561
भारत के संविधान के अनुच्छेद 309 के प्रतिबन्धात्मक खण्ड द्वारा प्रदत्त अधिकारों का प्रयोग करके, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल, उत्तर प्रदेश के कार्यों से सम्बद्ध सेवा में लगे सरकारी कर्मचारियों के आचरण को विनियमन करने वाले निम्नलिखित नियम बनाते हैं:-
1. संक्षिप्त नाम
यह नियम उत्तर प्रदेश सरकारी कर्मचारी आचरण नियमावली, 1956 कहलायेंगे।
2. परिभाषायें
जब तक प्रसंग से कोई अन्य अर्थ न हो, इन नियमों में-
(क) ‘‘सरकार” से तात्पर्य उत्तर प्रदेश सरकार से है;
(ख) ‘‘सरकारी कर्मचारी” से तात्पर्य उस व्यक्ति से है, जो उत्तर प्रदेश के कार्यों से सम्बद्ध लोक सेवाओं और पदों पर नियुक्त हो।
स्पष्टीकरण-इस बात के होते हुये भी, कि उस सरकारी कर्मचारी का वेतन उत्तर प्रदेश की संचित निधि के अतिरिक्त साधनों से आहरित किया जाता है, ऐसा सरकारी कर्मचारी भी, जिसकी सेवायें उत्तर प्रदेश सरकार ने किसी कम्पनी, निगम, संगठन, स्थानीय प्राधिकारी, केन्द्रीय सरकार ने किसी अन्य राज्य सरकार को अर्पित कर दी हो, इन नियमों के प्रयोजनों के लिये, सरकारी कर्मचारी समझा जायेगा।
2[(ग) किसी सरकारी कर्मचारी के सम्बन्ध में, ‘‘परिवार का सदस्य” के अन्तर्गत निम्नलिखित व्यक्ति सम्मिलित होंगेः
(1) ऐसे सरकारी कर्मचारी की पत्नी, उसका लड़का, सौतेला लड़का, अविवाहित लड़की या अविवाहित सौतेली लड़की चाहे वह उसके साथ रहता/रहती हो अथवा नहीं, और किसी महिला सरकारी कर्मचारी के सम्बन्ध में, उसके साथ रहने या न रहने वाला तथा उस पर आश्रित उसका पति, पुत्र, सौतेला पुत्र, अविवाहिता पुत्रियाँ या अविवाहित सौतेली पुत्रियाँ, तथा
(2) कोई भी अन्य व्यक्ति, जो रक्त सम्बन्ध से या विवाह द्वारा, उक्त सरकारी कर्मचारी का सम्बन्धी हो या ऐसे सरकारी कर्मचारी की पत्नी का या उसके पति का सम्बन्धी हो, और जो ऐसे कर्मचारी पर पूर्णतः आश्रित हो, किन्तु इसके अन्तर्गत ऐसी पत्नी या पति सम्मिलित नहीं होगी/सम्मिलित नहीं होगा, जो सरकारी कर्मचारी से विधितः पृथक् की गई हो/पृथक् किया गया हो या ऐसा लड़का, सौतेला लड़का हो, अविवाहित लड़की या अविवाहित लड़की सम्मिलित नहीं होगी/होगा जो आगे के लिए, किसी भी प्रकार उस पर आश्रित नहीं है या जिसकी अभिरक्षा से सरकारी कर्मचारी को, विधि द्वारा वंचित कर दिया गया हो।]
3. सामान्य
(1) प्रत्येक सरकारी कर्मचारी, सभी समयों में परम सत्यनिष्ठा तथा कर्तव्य परायणता से कार्य करता रहेगा।
(2) प्रत्येक सरकारी कर्मचारी सभी समयों पर, व्यवहार तथा आचरण को विनियमित करने वाले प्रवृत्त विशिष्ट या ध्वनित शासकीय आदेशों के अनुसार आचरण करेगा।
3[3-क. कामकाजी महिलाओं के यौन उत्पीड़न का प्रतिषेध
(1) कोई सरकारी कर्मचारी किसी महिला के कार्य स्थल पर, उसके यौन उत्पीड़न के किसी कार्य में संलिप्त नहीं होगा।
(2) प्रत्येक सरकारी कर्मचारी जो किसी कार्य स्थल का प्रभारी हो, उस कार्य स्थल पर किसी महिला के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए उपयुक्त कदम उठाएगा।
स्पष्टीकरण-इस नियम के प्रयोजनों के लिए ‘यौन उत्पीड़न’ में प्रत्यक्षत: या अन्यथा कामवासना से प्रेरित कोई ऐसा अशोभनीय व्यवहार सम्मिलित है जैसे कि-
(क) शारीरिक स्पर्श ओर कामोदीप्त सम्बन्धी चेष्टाएँ,
(ख) यौन स्वीकृति की मांग या प्रार्थना,
(ग) कामवासना-प्रेरित फब्तियां,
(घ) किसी कामोत्तेजक कार्य व्यवहार या सामग्री का प्रदर्शन, या
(ङ) यौन सम्बन्धी कोई अन्य अशोभनीय शारीरिक, मौखिक या सांकेतिक आचरण।]
4[3-ख. शिकायत समिति की रिपोर्ट पर कार्रवाई
यदि किसी कर्मचारी के विरूद्ध यौन शोषण या यौन उत्पीड़न की शिकायत कार्यस्थल के प्रभारी सहित नियुक्ति प्राधिकारी को की जाती है और यदि नियुक्त प्राधिकारी जांच के प्रयोजनार्थ एक शिकायत समिति (जिसमें एक महिला सदस्य का होना अनिवार्य होगा) गठित करता है तो ऐसी शिकायत समिति की रिपोर्ट/निष्कर्ष को जांच रिपोर्ट माना जाएगा और नियुक्ति प्राधिकारी ऐसी रिपोर्ट के आधार पर अपचारी सरकारी सेवक पर लघु शास्ति आरोपित कर सकता है और एक पृथक जांच संस्थित करने की आवश्यकता नहीं होगी।]
4. सभी लोगो के समान व्यवहार
(1) प्रत्येक सरकारी कर्मचारी, सभी लोगो के साथ चाहे वे किसी भी जाति, पंथ या धर्म के क्यों न हों, समान व्यवहार करेगा।
(2) कोई भी सरकारी कर्मचारी किसी भी रूप में अस्पृश्यता का आचरण नहीं करेगा।
5[4-क. मादक पान तथा औषधि का सेवन
कोई भी सरकारी कर्मचारी-
(क) किसी क्षेत्र में, जहाँ वह तत्समय विद्यमान हो, मादकपान अथवा औषधि सम्बन्धी प्रवृत्त किसी विधि का दृढ़ता से पालन करेगा,
(ख) अपने कर्तव्य पालन के दौरान किसी मादकपान या औषधि के प्रभावधीन नहीं होगा और इस बात का सम्यक् ध्यान रखेगा कि किसी भी समय उसके कर्तव्यों का पालन किसी भी प्रकार ऐसे पेय या भेषज के प्रभाव से प्रभावित नहीं होता है,
(ग) सार्वजनिक स्थान में किसी मादकपान अथवा औषधि के सेवन से अपने को विरत रखेगा,
(घ) मादक पान करके किसी सार्वजनिक स्थान में उपस्थित नहीं होगा,
(ङ) किसी भी मादकपान या औषधि का प्रयोग अत्याधिक मात्रा में नहीं करेगा।
स्पष्टीकरणः (i)-इस नियम के प्रयोजनार्थ ‘सार्वजनिक स्थान’ का तात्पर्य किसी ऐसे स्थान या भूगृहादि जिसके अन्तर्गत कोई सवारी भी है, जहाँ भुगतान करके या अन्य प्रकार से जनता जा सकती हो या उसे आने जाने की अनुज्ञा हो।
स्पष्टीकरण (ii)-कोई गोष्ठी (क्लब)-
(क) जो सरकारी कर्मचारियों से भिन्न व्यक्तियों की सदस्यों के रूप में प्रवेश देती है; अथवा
(ख) जिसके सदस्य गैर सदस्यों को उसके अतिथि के रूप में आमन्त्रित करते हैं यद्यपि सदस्यता सरकारी सेवकों तक ही सीमित क्यों न हो,
यह भी स्पष्टीकरण (i) के प्रयोजनों के लिए ऐसा स्थान माना जायेगा जिसके लिये जनता की पहुंच हो अथवा पहुँच के लिये अनुज्ञप्त हो।]
5. राजनीति तथा चुनाव में हिस्सा लेना
(1) कोई भी सरकारी कर्मचारी किसी राजनीतिक दल का या किसी संस्था का जो राजनीति में हिस्सा लेती है, सदस्य न होगा और न अन्यथा उससे सम्बन्ध रखेगा और न वह किसी ऐसे आंदोलन में या संस्था में हिस्सा लेगा, न उसके सहायतार्थ चन्दा देगा या किसी अन्य रीति से उसकी मदद करेगा जो प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति विद्रोही हो या उसके प्रति विद्रोही कार्यवाहियां करने की प्रवृत्ति पैदा करती हो।
उदाहरण
राज्य में ‘क’, ‘ख’, ‘ग’ …………………राजनीतिक दल हैं।
‘क’ वह दल है जिसके हाथ में सत्ता है और जिसने उस समय की सरकार बनायी है।
‘अ’ एक सरकारी कर्मचारी है।
इस उपनियम को निषेधाज्ञा ‘अ’ पर सभी दलों के सम्बन्ध में लागू होंगे, जिसमें ‘क’ दल भी है जिसके हाथ में सत्ता है, सम्मिलित होगा।
(2) प्रत्येक सरकारी कर्मचारी का यह कर्तव्य होगा कि वह अपने परिवार के किसी भी सदस्य को ऐसे आन्दोलन या क्रिया में जो प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति उच्छेदक है या उसके प्रति उच्छेदक कार्यवाहियों करने की प्रवृत्ति पैदा करती है, हिस्सा लेने, सहायतार्थ चन्दा देने या किसी अन्य रीति से उसकी मदद करने से रोकने का प्रयत्न करे, और उस दशा में जबकि कोई सरकारी कर्मचारी अपने परिवार के किसी सदस्य को किसी ऐसे आन्दोलन या क्रिया में हिस्सा लेने, सहायतार्थ चन्दा देने या किसी अन्य रीति से मदद करने से रोकने में असफल रहे, तो यह इस आशय की एक रिपोर्ट सरकार के पास भेज देगा।
उदाहरण
‘क’ एक सरकारी कर्मचारी है।
‘ख’ एक ‘परिवार का सदस्य’ है, जैसे उसकी परिभाषा नियम 2 (ग) में दी गयी है।
‘ड’ वह आन्दोलन या क्रिया है, जो प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति उच्छेदक है या उसके प्रति उच्छेदक कार्यवाहियाँ करने की प्रवृत्ति पैदा करती है।
‘क’ को विदित हो जाता है कि इस उपनियम के उपबन्धों के अन्तर्गत ‘ड’ के साथ ‘ख’ का सम्पर्क आपत्तिजनक है। ‘क’ को चाहिये कि वह ‘ख’ के ऐसे आपत्तिजनक सम्पर्क को रोके। यदि ‘क’ ‘ख’ के ऐसे सम्पर्क को रोकने में असफल रहे, तो उसे इस मामले की एक रिपोर्ट सरकार के पास भेज देना चाहिये।
यदि कोई प्रश्न उठता है कि कोई आन्दोलन या क्रिया इस नियम के क्षेत्र में आती है अथवा नहीं तो इस प्रश्न पर सरकार द्वारा दिया गया निर्णय अन्तिम होगा।
(3) [***]
(4) कोई सरकारी कर्मचारी, किसी विधान मण्डल या स्थानीय प्राधिकारी के चुनाव में न तो मतार्थन करेगा, न अन्यथा उसमें हस्तक्षेप करेगा और न उसके सम्बन्ध में अपने प्रभाव का प्रयोग करेगा और न उसमें हिस्सा लेगाः
किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि-
(1) कोई सरकारी कर्मचारी, जो ऐसे चुनाव में वोट डालने का अधिकारी है, वोट डालने के अपने अधिकार को प्रयोग में ला सकता है, किन्तु उस दशा में जब कि वह वोट डालने के अधिकार का प्रयोग करता है वह इस बात का कोई संकेत न देगा कि उसने किस ढंग से अपना वोट डालने का विचार किया है अथवा किसी ढंग से उसने अपना वोट डाला है।
(2) केवल इस कारण से तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा या उसके अन्तर्गत उस पर आरोपित किसी कर्तव्य के यथोचित पालन में, कोई सरकारी कर्मचारी किसी चुनाव के संचालन में मदद करता है, उसके सम्बन्ध में यह नहीं समझा जायेगा कि उसने इस उप-नियम के उपबन्धों का उल्लंघन किया है।
स्पष्टीकरण-
किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा अपने शरीर, अपनी सवारी गाड़ी या निवास स्थान पर, किसी चुनाव चिन्ह का प्रदर्शन किया जाये तो यह समझा जायेगा कि उसने इस उपनियम के अर्थ के अन्तर्गत किसी चुनाव के सम्बन्ध में अपने प्रभाव का प्रयोग किया है।
उदाहरण
किसी चुनाव के सम्बन्ध में, रिटर्निंग आफीसर, सहायक रिटर्निंग आफीसर, पीठासीन अधिकारी, मतदान अधिकारी या मतदान क्लर्क की हैसियत से कार्य करना उपनियम (4) के उपबन्धों का उल्लंघन नहीं होगा।
6[5-क. प्रदर्शन तथा हड़तालें
कोई सरकारी कर्मचारी-
(1) कोई ऐसा प्रदर्शन नहीं करेगा या किसी ऐसे प्रदर्शन में भाग नहीं लेगा जो भारत की प्रभुता तथा अखण्डता के हितों, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों, सार्वजानिक सुव्यवस्था, भद्रता या नैतिकता के प्रतिकूल हो अथवा जिससे न्यायालय की अवमानना या मानहानि होती हो या अपराध करने के लिए उत्तेजना मिलती हो, अथवा
(2) अपनी सेवा किसी अन्य सरकारी कर्मचारी की सेवा से सम्बन्धित किसी मामले के सम्बन्ध में न तो कोई हड़ताल करेगा और न किसी प्रकार की हड़ताल करने के लिए अवप्रेरित करेगा।
5-ख. सरकारी कर्मचारियों द्वारा संघों का सदस्य बनना
कोई सरकारी कर्मचारी किसी संघ का न तो सदस्य बनेगा और न उसका सदस्य बना रहेगा, जिसके उद्देश्य या क्रियायें भारत की प्रभुता तथा अखण्डता के हितों या सार्वजनिक सुव्यवस्था या नैतिकता के हितों के प्रतिकूल हो।]
6. समाचार पत्रों या रेडियो से सम्बन्ध
(1) कोई सरकारी कर्मचारी, सिवाय उस दशा के, जबकि उसने सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो, किसी समाचार-पत्र या अन्य नियतकालिक प्रकाशन का पूर्णतः या अंशतः स्वामी नहीं बनेगा, न उसका संचालन करेगा और न उसके संपादन या प्रबन्ध में भाग लेगा।
(2) कोई सरकारी कर्मचारी, सिवाय उस दशा के, जबकि उसने सरकार की या इस सम्बन्ध में सरकार द्वारा अधिकृत किसी अन्य प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो अथवा जब वह अपने कर्तव्यों का सद्भाव से निर्वहन कर रहा हो, किसी रेडियो प्रसारण में भाग नहीं लेगा या किसी समाचार-पत्र या पत्रिका को लेख नही भेजेगा और गुमनाम से अपने नाम में या किसी अन्य व्यक्ति के नाम में, किसी समाचार पत्र या पत्रिका को कोई पत्र नहीं लिखेगाः
किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि उस दशा में, जबकि ऐसे प्रसारण या लेख का स्वरूप केवल साहित्यिक, कलात्मक या वैज्ञानिक हो, किसी ऐसे स्वीकृति-पत्र के प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं होगी।
7. सरकार की आलोचना
कोई सरकारी कर्मचारी किसी रेडियो प्रसारण में या गुमनाम से या स्वयं अपने नाम में या किसी अन्य व्यक्ति के नाम में प्रकाशित किसी लेख में या समाचार-पत्रों को भेजे गये किसी पत्र में, या किसी सार्वजनिक कथन में कोई ऐसी तथ्य की बात या मत नहीं व्यक्त करेगाः-
(1) जिससे प्रभाव यह हो कि वरिष्ठ पदाधिकारियों के किसी निर्णय की प्रतिकूल आलोचना हो या उत्तर प्रदेश सरकार या केन्द्रीय सरकार या किसी अन्य राज्य सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकारी की किसी चालू या हाल की नीति या कार्य की प्रतिकूल आलोचना हो, या
(2) जिससे उत्तर प्रदेश सरकार और केन्द्रीय सरकार या किसी अन्य राज्य की सरकार के आपसी सम्बन्धों में उलझन पैदा हो सकती हो, या
(3) जिससे केन्द्रीय सरकार और विदेशी राज्य की सरकार के आपसी सम्बन्धों में उलझन पैदा हो सकती हो:
किन्तु यह प्रतिबन्ध यह है कि इस नियम में दी हुई कोई भी बात किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा व्यक्त किये गये किसी ऐसे कथन या विचारों के सम्बन्ध में लागू न होगी, जिन्हें अपने सरकारी पद की हैसियत से या उसे सौंपे गये कर्तव्यों के यथोचित पालन में व्यक्त किया हो।
उदाहरण
(1) ‘क’ को जो एक सरकारी कर्मचारी है, सरकार द्वारा नौकरी से बर्खास्त किया गया है। ‘ख’ को, जो एक दूसरा सरकारी कर्मचारी है, इस बात की अनुमति नहीं है कि वह सार्वजनिक रूप से यह कहे कि दिया गया दण्ड अवैध, अत्याधिक या अन्यायपूर्ण है।
(2) कोई सार्वजनिक अफसर स्टेशन ‘क’ से स्टेशन ‘ख’ को स्थानान्तरित किया गया है। कोई भी सरकारी कर्मचारी, उक्त सार्वजनिक अफसर की स्टेशन ‘क’ पर ही बनाये रखने से सम्बन्धित किसी आन्दोलन में भाग नहीं ले सकता।
(3) किसी सरकारी कर्मचारी को इस बात की अनुमति नहीं है कि वह सार्वजनिक रूप से ऐसे मामलों में सरकार की नीति की आलोचना करे, जैसे किसी वर्ष के लिये निर्धारित गन्ने का भाव, परिवहन का राष्ट्रीकरण इत्यादि।
(4) कोई सरकारी कर्मचारी, निर्दिष्ट आयात की गई वस्तुओं पर केन्द्रीय सरकार द्वारा लगाये गये कर की दर के सम्बन्ध में कोई मत व्यक्त नहीं कर सकता।
(5) एक पड़ोसी राज्य, उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित किसी भूखण्ड के सम्बन्ध में दावा करता है कि वह भूखण्ड उसका है। कोई सरकारी कर्मचारी उक्त दावे के सम्बन्ध में सार्वजनिक रूप से, कोई मत व्यक्त नहीं कर सकता।
(6) किसी सरकारी कर्मचारी को इस बात की अनुमति नहीं है कि वह किसी विदेशी राज्य के इस निश्चय पर कोई मत प्रकाशित करे कि उसने उन रियायतों को समाप्त कर दिया है जिन्हें वह एक दूसरे राज्य के राष्ट्रीयकों को देता था।
8. किसी समिति या किसी अन्य प्राधिकारी के सामने साक्ष्य
(1) उप-नियम (3) में उपबन्धित स्थिति के अतिरिक्त, कोई सरकारी कर्मचारी, सिवाय उस दशा के, जबकि उसने सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो, किसी व्यक्ति, समिति या प्राधिकारी द्वारा संचालित किसी जाँच के सम्बन्ध में साक्ष्य नहीं देगा।
(2) उस दशा में, जब कि उपनियम (1) के अन्तर्गत कोई स्वीकृति प्रदान की गई हो, कोई सरकारी कर्मचारी इस प्रकार के साक्ष्य देते समय उत्तर प्रदेश सरकार, केन्द्रीय सरकार या किसी अन्य राज्य सरकार की नीति की आलोचना नहीं करेगा।
(3) इस नियम में दी हुई कोई बात, निम्नलिखित के सम्बन्ध में लागू न होगी:
(क) साक्ष्य जो सरकार, केन्द्रीय सरकार, उत्तर प्रदेश के विधान मण्डल या संसद द्वारा नियुक्त किसी प्राधिकारी के सामने दी गई हो, या
(ख) साक्ष्य, जो किसी न्यायिक जाँच में दी गयी हो।
9. सूचना का अनधिकृत संचार
कोई सरकारी कर्मचारीी, सिवाय सरकार के किसी अथवा विशेष आदेशानुसार या उसको सौंपे गये कर्तव्यों का सद्भाव के साथ पालन करते हुये प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः कोई सरकारी लेख या सूचना किसी सरकारी कर्मचारी को या किसी ऐसे अन्य व्यक्तियों को, जिसे ऐसा लेख या सूचना देने या संचार करने का उसे अधिकार न हो, न देगा और न संचार करेगा।
स्पष्टीकरण-किसी कर्मचारी द्वारा अपने वरिष्ठ पदाधिकारियों को दिये गए अभ्यावेदन में किसी पत्रावली की टिप्पणियों में से उद्धरण देना इस नियम के अर्थ के अन्तर्गत सूचना का अनाधिकृत संचार माना जायेगा।
10. चन्दे
कोई सरकारी कर्मचारी सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त करके किसी ऐसे धर्मार्थ प्रयोजन के लिये चन्दा या कोई अन्य वित्तीय सहायता मांग सकता है या स्वीकार कर सकता है या उसे इकट्ठा करने में भाग ले सकता है, जिसका सम्बन्ध डाक्टरी सहायता, शिक्षा या सार्वजनिक उपयोगिता के अन्य उद्देश्यों से हो, किन्तु उसे इस बात की अनुमति नही है कि वह इनके अतिरिक्त किसी भी अन्य प्रयोजन के लिये चन्दा आदि माँगे।
7[11. भेंट
कोई सरकारी कर्मचारी, सिवाय उस दशा के जबकि उसने सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो
(क) स्वयं अपनी ओर से या किसी अन्य व्यक्ति की ओर से या किसी ऐसे व्यक्ति से जो उसका निकट सम्बन्धी न हो, प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः कोई भेंट, अनुग्रह या धन या पुरस्कार स्वीकार नहीं होगा, या
(ख) अपने परिवार के किसी ऐसे सदस्य को, जो उस पर आश्रित हो, किसी ऐसे व्यक्ति से जो उसका निकट सम्बन्धी न हो, कोई भेंट, अनुग्रह, धन या पुरस्कार स्वीकार करने की अनुमति नहीं देगाः
किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि वह किसी जातीय मित्र से, सरकारी कर्मचारी के मूल वेतन का दशांस या उससे कम मूल्य का एक विवाहोपहार या किसी रीतिक अवसर पर इतने ही मूल्य का एक उपहार स्वीकार कर सकता है या अपने परिवार के किसी सदस्य को उसे स्वीकार करने की अनुमति दे सकता है। किन्तु सभी सरकारी कर्मचारियों को चाहिये कि वे इस प्रकार के उपहारों को दिये जाने को भी रोकने का भरसक प्रयत्न करें।
उदाहरण
एक कस्बे के नागरिक यह निश्चय करते हैं ‘क’ को, जो एक सब-डिवीजनल अफसर है, बाढ़ के दौरान उसके द्वारा की गयी सेवाओं के सराहना स्वरूप एक घड़ी भेंट में दी जाये, जिसका मूल्य उसके मूल वेतन के दशांस से अधिक है। सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त किये बिना ‘क’ उक्त उपहार स्वीकार नहीं कर सकता है।]
8[11-क. दहेज
कोई भी सरकारी कर्मचारी-
(1) न तो दहेज देगा, न दहेज लेगा और न दहेज लेने देने हेतु प्रेरित करेगा, या
(2) वर या वधू के माता-पिता या संरक्षक से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जो भी स्थिति हो कोई दहेज नहीं लेगा।
स्पष्टीकरण-इस नियम के प्रयोजनों के लिये ‘‘दहेज” शब्द का अर्थ वही होगा, जो दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 (1961 के अधिनियम संख्या 28) में दिया गया हैं।]
12. 9 [***]
13. 9 [***]
14. सरकारी कर्मचारियों के सम्मान में सार्वजनिक प्रदर्शन
कोई सरकारी कर्मचारी, सिवाय उस दशा के जबकि उसने सरकार के पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो, कोई मान-पत्र या विदाई-पत्र नहीं लेगा, न कोई प्रमाण-पत्र स्वीकार करेगा और न अपने सम्मान में या किसी अन्य सरकारी कर्मचारी के सम्मान में आयोजित किसी सभा या सार्वजनिक आमोद में उपस्थित होगा:
किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि इस नियम में दी हुई कोई बात, किसी ऐसे विदाई समारोह के सम्बन्ध में लागू न होगी जो सारतः निजी तथा अरीतिक स्वरूप का हो और जो किसी सरकारी कर्मचारी के सम्मान में उसके अवकाश प्राप्त करने या स्थानान्तरण के अवसर पर आयोजित हो, या किसी ऐसे व्यक्ति के सम्मान में अयोजित हो जिसने हाल ही में सरकार की सेवा छोड़ी हो।
उदाहरण
‘क’ जो एक डिप्टी कलेक्टर है, रिटायर होने वाला है। ‘ख’ जो जिले में एक दूसरा डिप्टी कलेक्टर है, ‘क’ के सम्मान में एक ऐसा भोज दे सकता है जिसमें चुने हुये व्यक्ति आमन्त्रित किये गये हों।
10[15. असरकारी व्यापार या नौकरी
कोई सरकारी कर्मचारी, सिवाय उस दशा के जबकि उसने सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो, प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः किसी व्यापार या कारोबार में लगेगा और न ही कोई नौकरी करेगा:
किन्तु प्रतिबन्ध यह है, कि कोई सरकारी कर्मचारी, इस प्रकार की स्वीकृति प्राप्त किये बिना, कोई सामाजिक या धर्मार्थ प्रकार का अवैतनिक कार्य या कोई साहित्यिक, कलात्मक या वैज्ञानिक प्रकार का आकस्मिक कार्य कर सकता है, लेकिन शर्त यह है कि इस कार्य के द्वारा उसके सरकारी कर्तव्यों में कोई अड़चन नहीं पड़ता है तथा वह ऐसे कार्य हाथ में लेने से एक महीने के भीतर ही, अपने विभागाध्यक्ष को और यदि वह स्वयं विभागाध्यक्ष हो, तो सरकार को, इस बात की सूचना दे दे, किन्तु यदि सरकार उसे इस प्रकार का कोई आदेश दे तो वह ऐसा कार्य हाथ में नहीं लेगा, और यदि उसने हाथ में ले लिया है, तो बन्द कर देगा:
किन्तु अग्रेतर प्रतिबन्ध यह है किन्तु सरकारी कर्मचारी के परिवार के किसी सदस्य द्वारा असरकारी व्यापार या असरकारी नौकरी हाथ में लेने की दशा में ऐसे व्यापार या नौकरी की सूचना सरकारी कर्मचारी द्वारा सरकार को दी जायेगी।]
11 [15-क चौदह वर्ष से कम आयु के बच्चों की नियुक्ति के सम्बन्ध में प्रतिषेध
कोई सरकारी कर्मचारी किसी बच्चे को जिसकी आयु चौदह वर्ष से कम हो, न तो परिसंकटमय कार्य में नियोजित करेगा, न बेगार करायेगा अथवा ऐसे बच्चों से इसी प्रकार के अन्य बलपूर्वक श्रम लेगा।]
12 [16. कम्पनियों का निबन्धन, प्रर्वतन तथा प्रबन्ध
कोई सरकारी कर्मचारी सिवाय उस दशा के, जबकि उसने सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो, किसी ऐसे बैंक या अन्य कम्पनी के निबन्धन, प्रवर्तन या प्रबन्ध में भाग न लेगा, जो कम्पनीज ऐक्ट, 1956 के अधीन या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन निबद्ध हुआ है।
किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि सरकारी कर्मचारी उत्तर प्रदेश सहकारी समिति अधिनियम, 1965 (उत्तर प्रदेश अधिनियम सं0 11, सन् 1966) के अधीन या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन किसी सहकारी समिति या सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860 (ऐक्ट संख्या 21, 1860) या किसी तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन निबद्ध किसी साहित्यिक, वैज्ञानिक या धर्मार्थ समिति के निबन्धन, प्रवर्तन या प्रबन्ध में भाग ले सकता है:
अग्रेतर प्रतिबन्ध यह है कि यदि कोई सरकारी कर्मचारी किसी सहकारी समिति के प्रतिनिधि के रूप में किसी बड़ी सहकारी समिति या निकाय में उपस्थित हो तो वह उस बड़ी सहकारी समिति या निकाय के किसी पद के निर्वाचन की इच्छा न करेगा। वह ऐसे निर्वाचनों में केवल अपना मत देने के लिये भाग ले सकता है।]
17. बीमा कारोबार
कोई सरकारी कर्मचारी, अपनी पत्नी को या अपने किसी अन्य सम्बन्धी को जो या तो उस पर पूर्णतः आश्रित हो या उसके साथ निवास करता हो, उसी जिले में, जिसमें वह तैनात हो, बीमा अधिकर्ता के रूप में कार्य करने की अनुमति नहीं देगा।
18. अवयस्कों का संरक्षकत्व
कोई सरकारी कर्मचारी, समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति प्राप्त किये बिना, उसी पर आश्रित किसी अवयस्क के अतिरिक्त, किसी अन्य अवयस्क के शरीर या उसकी सम्पत्ति के विधिक संरक्षक के रूप में कार्य नहीं करेंगा।
स्पष्टीकरण-1 इस नियम के प्रयोजन के लिये, आश्रित से तात्पर्य किसी सरकारी कर्मचारी की पत्नी, बच्चों तथा सौतले बच्चों और बच्चों से है, और इसके अन्तर्गत उसके माता, पिता, बहन, भाई, भाई के बच्चे और बहिन के बच्चे भी सम्मिलित होंगे, यदि वे उसके साथ निवास करते हों और उस पर पूर्णतः आश्रित हों।
स्पष्टीकरण-2 इस नियम के प्रयोजन के लिये, समुचित प्राधिकारी वही होगा, जैसा कि नीचे दिया गया है-
विभागाध्यक्ष या मण्डलायुक्त या कलेक्टर के लिए | राज्य सरकार |
जिला जज के लिए | उच्च न्यायालय का प्रशासकीय जज |
अन्य सरकारी कर्मचरियों के लिए | सम्बन्धित विभागाध्यक्ष |
19. किसी सम्बन्धी (रिश्तेदार) के विषय में कार्यवाही
(1) जब कोई सरकारी कर्मचारी, किसी ऐसे व्यक्ति विशेष के बारे में, जो उसका सम्बन्धी हो, चाहे वह सम्बन्ध दूर का या निकट का हो, कोई प्रस्ताव या मत प्रस्तुत करता है या कोई अन्य कार्यवाही करता है, चाहे वह प्रस्ताव, मत कार्यवाही उक्त सम्बन्धी के पक्ष में हो अथवा उसके विरूद्ध हो, तो वह प्रत्येक ऐसे प्रस्ताव, मत या कार्यवाही के साथ, यह बात भी स्पष्ट रूप से बता देगा कि वह व्यक्ति विशेष उसका सम्बन्धी है, अथवा नहीं और यदि वह उसका ऐसा सम्बन्धी है, तो इस सम्बन्ध का स्वरूप क्या है।
(2) जब किसी प्रवृत्त विधि, नियम या आदेश के अनुसार, कोई सरकारी कर्मचारी किसी प्रस्ताव, मत या किसी अन्य कार्यवाही के सम्बन्ध में अन्तिम रूप से निर्णय करने की शक्ति रखता है, और जब वह प्रस्ताव, मत या कार्यवाही, किसी ऐसे व्यक्ति विशेष के सम्बन्ध में है जो उसका सम्बन्धी है, चाहे वह सम्बन्ध दूर का या निकट का हो और चाहे उस प्रस्ताव, मत या कार्यवाही का उक्त व्यक्ति विशेष पर अनुकूल प्रभाव पड़ता हो या अन्यथा वह कोई निर्णय नहीं.देगा, बल्कि वह उस मामले को अपने वरिष्ठ पदाधिकारियों को प्रस्तुत कर देगा। और साथ ही उसे प्रस्तुत करने के कारण तथा सम्बन्ध को भी स्पष्ट कर देगा।
20. सट्टा लगाना
(1) कोई सरकारी कर्मचारी किसी लगी हुई पूँजी में सट्टा नहीं लगायेगा।
स्पष्टीकरण-बहुत ही अस्थिर मूल्य वाली प्रतिभूतियों की सतत खरीद या बिक्री के सम्बन्ध में यह समझा जायेगा कि वह इस नियम के अर्थ में लगी हुई पूँजी में सट्टा लगाता है।
(2) यदि कोई प्रश्न उठता है कि कोई प्रतिभूति या लगी हुई पूँजी उपनियम (1) में निर्दिष्ट स्वरूप की है अथवा नहीं, तो उस पर सरकार द्वारा निर्णय अन्तिम होगा।
13[21. विनिधान (विनियोग)
(1) कोई सरकारी कर्मचारी, न तो कोई पूँजी इस प्रकार स्वयं लगायेगा और न अपनी पत्नी या अपने परिवार के किसी सदस्य को लगाने देगा, जिससे उसके सरकारी कर्तव्यों के परिपालन में उलझन या प्रभाव पड़ने की सम्भावना हो।
(2) यदि कोई प्रश्न उठता है कि कोई प्रतिभूति या लगी हुई पूँजी उपनियम (1) के स्वरूप की है अथवा नहीं तो उस पर सरकार द्वारा दिया गया निर्णय अन्तिम होगा।
उदाहरण
कोई जिला जज उस जिले में जिसमें वह तैनात है अपनी पत्नी या अपने पुत्र को कोई सिनेमागृह खोलने, या उसमें कोई हिस्सा खरीदने की अनुमति नहीं देगा और यदि वह ऐसे जिले को स्थानान्तरित कर दिया जाता है जहाँ उसके परिवार के सदस्य पहिले ही ऐसा विनियोग कर चुके हैं तो, वह अपने वरिष्ठ प्राधिकारी को अविलम्ब सूचित करेगा।]
14 [22. उधार देना और उधार लेना-
(1) कोई सरकारी कर्मचारी, सिवाय उस दशा के, जबकि उसने समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो, किसी ऐसे व्यक्ति, को जिसके पास उसके प्राधिकार की स्थानीय सीमाओं के भीतर, कोई भूमि या बहुमूल्य सम्पत्ति हो, रुपया उधार नहीं लेगा और न किसी व्यक्ति को ब्याज पर रुपया उधार देगा:
किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि कोई सरकारी कर्मचारी, किसी असरकारी नौकर को, अग्रिम रूप में वेतन दे सकता है या इस बात के होते हुये भी कि ऐसा व्यक्ति (उसका मित्र या सम्बन्धी) उसके प्राधिकार की स्थानीय सीमाओं के भीतर कोई भूमि रखता है, वह अपने किसी जातीय मित्र या सम्बन्धी को बिना ब्याज के, एक छोटी रकम वाला ऋण दे सकता है।]
15 [(2) कोई भी सरकारी कर्मचारी, सिवाय किसी बैंक, सहकारी समिति या अच्छी साख वाले फर्म के साथ साधारण व्यापार क्रम के अनुसार न तो किसी व्यक्ति से, अपने स्थानीय प्राधिकार की सीमाओं के भीतर, रुपया उधार लेगा और न अन्यथा अपने को ऐसी स्थिति में रखेगा, जिससे वह उस व्यक्ति के वित्तीय आधार के अन्तर्गत हो जाय, और न वह सिवाय उस दशा के जबकि उसने समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो, अपने परिवार के किसी सदस्य को, इस प्रकार का व्यवहार करने की अनुमति देगा।:
किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि कोई सरकारी कर्मचारी किसी जातीय मित्र व सम्बन्धी से अपने दो माह के मूल वेतन या उससे कम मूल्य का बिना ब्याज वाला एक नितान्त अस्थायी ऋण स्वीकार कर सकता है या किसी वास्तविक व्यापारी के साथ उधार लेखा चला सकता है।]
(3) जब कोई सरकारी कर्मचारी इस प्रकार के किसी पद पर नियुक्त या स्थानान्तरण पर भेजा जाये जिसमें उसके द्वारा उपनियम (1) या उप-नियम (2) के किन्हीं उपबन्धों का उल्लंघन निहित हो, तो वह तुरन्त ही समुचित प्राधिकारी को उक्त परिस्थितियों की रिपोर्ट भेज देगा, और उसके बाद ऐसे आदेशों के अनुसार कार्य करेगा जिन्हे समुचित प्राधिकारी दे।
(4) ऐसे सरकारी कर्मचारियों की दशा में, जो राजपत्रित अधिकारी है, समुचित प्राधिकारी सरकार होगी और दूसरे मामलों में कार्यालयाध्यक्ष समुचित प्राधिकारी होगा।
23. दिवाला और अभ्यासी ऋणग्रस्तता
कोई सरकारी, कर्मचारी अपने व्यक्तिगत मामलों का ऐसा प्रबन्ध करेगा जिससे वह अभ्यासी ऋणग्रस्तता से या दिवाला से बच सके। ऐसे सरकारी कर्मचारी को, जिसके विरूद्ध उसके दिवालिया होने के सम्बन्ध में कोई विधिक कार्यवाही चल रही हो, उसे चाहिये कि वह तुरन्त ही उस कार्यालय या विभाग के अध्यक्ष को, जिसमें वह नौकरी कर रहा हो, सब बातों की रिपोर्ट भेज दे।
24. चल-अचल एवं बहुमूल्य सम्पत्ति
(1) कोई सरकारी कर्मचारी, सिवाय उस दशा में जबकि समुचित प्राधिकारी को इसकी पूर्ण जानकारी हो, या तो स्वयं अपने नाम से या अपने परिवार के किसी सदस्य के नाम से पट्टा, रेहन, क्रय, विक्रय या भेंट द्वारा या अन्यथा, न तो कोई अचल सम्पत्ति अर्जित करेगा और न उसे बेचेगा:
किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि ऐसे व्यवहार के लिये, जो किसी नियमित और ख्याति प्राप्त व्यापारी से भिन्न व्यक्ति द्वारा संपादित किया गया हो, समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति प्राप्त करना आवश्यक होगा।
उदाहरण
‘क’ जो एक सरकारी कर्मचारी है, एक मकान खरीदने का प्रस्ताव करता है। उसे समुचित प्राधिकारी को इस प्रस्ताव की सूचना दे देनी चाहिये। यदि वह व्यवहार किसी नियमित और ख्याति प्राप्त व्यापारी से भिन्न व्यक्ति द्वारा संपादित किया जाना है तो ‘क’ को चाहिये कि वह समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति भी प्राप्त कर ले। यही प्रक्रिया उस दशा में भी लागू होगी जब ‘क’ अपना मकान बेचने का प्रस्ताव करे।
16 [(2) कोई सरकारी कर्मचारी जो अपने एक माह के मूल वेतन से अधिक मूल्य की किसी चल सम्पत्ति के सम्बन्ध में कोई व्यवहार करता है, चाहे वह क्रय-विक्रय के रूप में सम्पादित हो या अन्यथा, तो उसे तुरन्त ही ऐसे व्यवहार की रिपोर्ट समुचित प्राधिकारी के पास भेज देना चाहिए:
किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि कोई सरकारी कर्मचारी, सिवाय किसी ख्याति प्राप्त व्यापारी या अच्छी साख के अभिकर्ता के साथ या द्वारा या समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति के साथ इस प्रकार का कोई व्यवहार नहीं करेगा।]
उदाहरण
(i) एक सरकारी कर्मचारी जिसका मासिक वेतन छः सौ रुपये है, सात सौ रुपये का टेप रिकार्डर खरीदता है, या
(ii) ‘‘ख” सरकारी कर्मचारी जिसका मासिक वेतन दो हजार रुपया मासिक है कार, एक हजार पाँच सौ रुपये में बेचता है।
प्रत्येक दशा में ‘क’ या ‘ख’ को मामला समुचित प्राधिकारी को सूचित करना चाहिये। यदि व्यवहार किसी ख्याति व्यापारी से भिन्न व्यक्ति से सम्पादित किया जाता है तो उनको चाहिये कि समुचित प्राधिकारी को पूर्व स्वीकृति भी प्राप्त कर ले।
(3) प्रथम नियुक्ति के समय और तदुपरान्त हर पाँच वर्ष की अवधि बीतने पर प्रत्येक सरकारी कर्मचारी, सामान्य मार्ग के माध्यम से नियुक्त करने वाले प्राधिकारी को, ऐसी सभी अचल सम्पत्ति की घोषणा करेगा जिसका वह स्वयं स्वामी हो, जिसे उसने खुद अर्जित किया हो या जिसे उसने दान के रूप में पाया हो या जिसे वह पट्टा या रेहन पर रखे हो, ऐसे हिस्सों को या अन्य लगी हुई पूँजियों की घोषणा करेगा, जिन्हे वह समय-समय पर रखे या अर्जित करे, या उसकी पत्नी या उसके साथ रहने वाले या किसी प्रकार भी उस पर आश्रित उसके परिवार के किसी सदस्य द्वारा रखी गई हो या अर्जित की गयी हो। इन घोषणाओं में सम्पत्ति, हिस्सों और अन्य लगी हुई पूँजियों के पूरे ब्यौरे दिये जाने चाहिये।
(4) समुचित प्राधिकारी, सामान्य या विशेष आदेश द्वारा किसी भी समय किसी सरकारी कर्मचारी को यह आदेश दे सकता है कि वह आदेश में निर्दिष्ट अवधि के भीतर, ऐसी चल या अचल सम्पत्ति का जो उसके पास अथवा उसके परिवार के किसी सदस्य के पास रही हो या अर्जित की गई हो और जो आदेश में निर्दिष्ट हो, एक सम्पूर्ण विवरण-पत्र प्रस्तुत करे। यदि समुचित प्राधिकारी ऐसा आदेश दे तो ऐसे विवरण-पत्र में उन साधनों के या उस प्रसाधन के ब्यौरे भी सम्मिलित हों, जिनके द्वारा ऐसी सम्पत्ति अर्जित की गई थी।
(5) समुचित प्राधिकारी-
(क) राज्य सेवा के किसी सरकारी कर्मचारी के प्रसंग में उपनियम (1) तथा (4) के प्रयोजन के निमित्त सरकार होगी और उपनियम (2) के निमित्त विभागाध्यक्ष होगा।
(ख) अन्य सरकारी कर्मचारियों की दशा में उपनियम (1) से (4) तक के प्रयोजनों के निमित्त विभागाध्यक्ष होगा।
25.सरकारी कर्मचारियों के कार्यों तथा चरित्र का प्रतिसमर्थन
कोई सरकारी कर्मचारी सिवाय उस दशा के जब उसने सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो, किसी ऐसे सरकारी कार्य का जो प्रतिकूल आलोचना या मानहानिकारी आक्षेप का विषय बन गया हो, प्रतिसमर्थन करने के लिये किसी समाचार-पत्र की शरण न लेगा।
स्पष्टीकरण-इस नियम की किसी बात के सम्बन्ध में यह नहीं समझा जायेगा कि किसी सरकारी कर्मचारी को अपने चरित्र का या उसके द्वारा निजी रूप में किये गये किसी कार्य का प्रतिसमर्थन करने से प्रतिषेध किया जाता है।
26. 17[***]
27. असरकारी या अन्य बाहृय प्रभाव का मतार्थन
कोई सरकारी कर्मचारी अपनी सेवा से संबंधित अपने हितों से सम्बद्ध किसी मामले में कोई राजनीतिक या अन्य बाहृय साधनों से न तो स्वयं या अपने कुटुम्ब के किसी सदस्य द्वारा कोई प्रभाव डालेगा या प्रभाव डालने का प्रयास करेगा।
स्पष्टीकरण-सरकारी कर्मचारी की यथास्थिति पत्नी या पति या अन्य सम्बन्धी द्वारा किया गया कोई कार्य जो इस नियम की सीमा के अन्तर्गत हो, के सम्बन्ध में, जब तक कि इसके विपरीत प्रमाणित न हो जाये, यह माना जायेगा कि वह कार्य सम्बन्धित कर्मचारी की प्रेरणा या मौन स्वीकृति से किया गया।
उदाहरण
‘क’ सरकारी कर्मचारी है और ‘ख’ ‘क’ के कुटुम्ब का एक सदस्य है। ‘ग’ एक राजनीतिक दल है और ‘ग’ के अन्तर्गत ‘घ’ एक संगठन है। ‘ख’ ने ‘ग’ में पर्याप्त ख्याति प्राप्त कर ली और ‘घ’ एक पदाधिकारी हो गया। ‘घ’ के द्वारा ‘ख’ ने ‘क’ की बात का समर्थन करना प्रारम्भ किया। यहां तक कि ‘ख’ ने ‘क’ के उच्च अधिकारियों के विरूद्ध संकल्प प्रस्तुत किया। ‘ख’ का यह कार्य उपर्युक्त नियम के उपबन्धों का उल्लंघन होगा और उसके सम्बन्ध में यह समझा जायेगा कि वह ‘क’ की प्रेरणा या उसकी मौन स्वीकृति से किया गया है जब तक कि ‘क’ यह न प्रमाणित कर दे कि ऐसा नहीं था।
18 [27.क सरकारी सेवकों द्वारा अभ्यावेदन
कोई सरकारी कर्मचारी सिवाय उचित माध्यम से और ऐसे निर्देशों के अनुसार जिन्हें सरकार समय-समय पर जारी करे, व्यक्तिगत रूप से या अपने परिवार के किसी सदस्य के माध्यम से सरकार या किसी अन्य प्राधिकारी को कोई अभ्यावेदन नहीं करेगा। नियम 27 का स्पष्टीकरण इस नियम पर लागू होगा।]
28. अनाधिकृत वित्तीय व्यवस्थायें
कोई सरकारी कर्मचारी किसी अन्य सरकारी कर्मचारी के साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ कोई ऐसी वित्तीय व्यवस्था नहीं करेगा, जिससे दोनों में से किसी एक को या दोनो ही को, अनाधिकृत रूप में या तत्समय प्रवृत्त किसी नियम के विशिष्ट या ध्वनित उपबन्धों के विरूद्ध किसी प्रकार का लाभ हो।
उदाहरण
(1) ‘क’ किसी कार्यालय में एक सीनियर क्लर्क है और स्थानापन्न रूप से पदोन्नति पाने का अधिकारी है। ‘क’ को इस बात का भरोसा नहीं है कि वह उस स्थानापन्न पद के अपने कर्तव्यों का संतोषजनक रूप से निर्वहन कर सकता है। ‘ख’ जो एक जूनियर क्लर्क है, कुछ वित्तीय प्रतिफल को दृष्टि में रखकर ‘क’ को निजी तौर पर मदद देने को तैयार होता है। तद्नुसार ‘क’ और ‘ख’ वित्तीय व्यवस्था करते हैं। दोनों ही इस प्रकार नियम तोड़ते है।
(2) यदि ‘क’ जो किसी कार्यालय का अधीक्षक है, छुट्टी पर जाये तो ‘ख’ जो कार्यालय का सबसे सीनियर असिस्टेंट है, स्थानापन्न रूप से कार्य करने का अवसर पा जायेगा। यदि ‘क’ ‘ख’ के साथ स्थानापन्न भत्ते में एक हिस्सा लेने की व्यवस्था करने के पश्चात छुट्टी पर जाये तो ‘क’ और ‘ख’ दोनो ही नियम भंग करेंगे।
29. द्वि-विवाह
(1) कोई सरकारी कर्मचारी, जिसकी एक पत्नी जीवित है, इस बात के होते हुये भी कि तत्समय उस पर लागू किसी वैयक्तिक विधि के अधीन उसे इस प्रकार की बाद की दूसरी शादी करने की अनुमति प्राप्त है, सरकार की अनुमति प्राप्त किये बगैर दूसरा विवाह नहीं करेगा।
(2) कोई महिला सरकारी कर्मचारी, सरकार की अनुमति प्राप्त किये बगैर किसी ऐसे व्यक्ति से, जिसकी एक पत्नी जीवित हो, विवाह नहीं करेगी।
30. सुख सुविधाओं का समुचित प्रयोग
कोई सरकारी कर्मचारी ऐसी सुख-सुविधाओं का कुप्रयोग नहीं करेगा और न उनका असावधानी के साथ प्रयोग करेगा, जिनकी व्यवस्था सरकार ने उसके सरकारी कर्तव्यों के पालन में उसे सुविधा पहुंचाने के प्रयोजन से की हो।
उदाहरण
सरकारी कर्मचारियों के निमित्त जिन सुख-सुविधाओं की व्यवस्था की जाती है, उनमें मोटर, टेलीफोन, निवास स्थान, फर्नीचर, अर्दली, लेखन-सामग्री आदि की व्यवस्था सम्मिलित है। इन वस्तुओं के कुप्रयोग के या उनके असावधानी के साथ प्रयोग किये जाने के उदाहरण यह हैं-
(1) सरकारी कर्मचारी के परिवार के सदस्यों या उसके अतिथियों द्वारा सरकार व्यय पर सरकारी मोटरों का प्रयोग करना या अन्य सरकारी कार्य के लिये उनका प्रयोग करना;
(2) ऐसे मामलों के बारे में, जिनका सम्बन्ध सरकारी कार्य से नहीं है, सरकारी व्यय पर टेलीफोन ट्रंककाल करना;
(3) सरकारी निवास स्थानों और फर्नीचर के प्रति असावधानी बरतना तथा उन्हे ठीक दशा में बनाये नहीं रखना; और
(4) असरकारी कार्य के लिये सरकारी लेखन-सामग्री का प्रयोग करना।
31. खरीददारियों के लिए मूल्य देना
कोई सरकारी कर्मचारी, उस समय तक, जब तक किस्तों में मूल्य देना प्रथानुसार या विशेष रूप से उपबन्धित न हो या जब तक किसी वास्तविक व्यापारी के पास उसका उधार-लेखा न खुला हुआ हो, उस वस्तुओं का, जिन्हें उसने खरीदा हो, चाहे यह खरीददारियाँ उसने दौरे पर या अन्यथा की हों, तुरन्त पूर्ण मूल्य देने से मना नहीं करेगा।
32. बिना मूल्य दिये सेवाओं का उपयोग करना
कोई सरकारी कर्मचारी बिना यथोचित और पर्याप्त मूल्य दिये, किसी ऐसी सेवा या आमोद का स्वयं प्रयोग न करेगा, जिसके लिये कोई किराया या मूल्य प्रवेश-शुल्क लिया जाता हो।
उदाहरण
जब तक ऐसा करना कर्तव्य के एक अंश के तौर पर निर्दिष्ट रूप से निर्धारित न किया गया हो, कोई सरकारी कर्मचारी –
(1) किसी भी किराये पर चलने वाली गाड़ी में बिना मूल्य दिये यात्रा नहीं करेगा,
(2) बिना प्रवेश शुल्क दिये सिनेमा भी नहीं देखेगा।
33. दूसरी की सवारी गाड़ियाँ प्रयोग में लाना
कोई सरकारी कर्मचारी, सिवाय बहुत ही विशेष परिस्थितियों के होने की दशा में, किसी ऐसी सवारी गाड़ी को प्रयोग में नहीं लायेगा जो किसी असरकारी व्यक्ति की हो या किसी ऐसी सरकारी कर्मचारी की हो, जो उसके अधीन हो।
19 [34. अधीनस्थ कर्मचारियों के जरिये खरीददारियाँ
कोई सरकारी कर्मचारी, किसी ऐसे सरकारी कर्मचारी से, जो उसके अधीन हो, अपनी ओर से या अपनी पत्नी या अपने परिवार के अन्य सदस्य की ओर से, चाहे अग्रिम भुगतान करके या अन्यथा उसी शहर में या किसी दूसरे शहर मे, खरीददारियाँ करने के लिए न तो स्वयं करेगा और न अपनी पत्नी को या अपने परिवार के किसी अन्य सदस्य को जो उसके साथ रह रहा हो, कहने की अनुमति देगा।
उदाहरण
‘क’ एक डिप्टी कलेक्टर है।
‘ख’ उसके अधीन एक अधीनस्थ अधिकारी है।
‘क’ को चाहिये कि अपनी पत्नी को इस बात की अनुमति न दे कि वह ‘ख’ से कहे कि वह उसके लिये कपड़ा खरीदवा दे।
35. निर्वचन-
यदि नियमों के निर्वचन से सम्बन्धित कोई प्रश्न उठ खड़ा हो, तो उसे सरकार के पास भेज देना चाहिये और उस पर सरकार को जो भी निर्णय हो, वह अन्तिम होगा।
36. निरसन तथा अपवाद
इन नियमों के प्रारम्भ होने से ठीक पूर्व प्रवृत्त कोई भी नियम, जो इन नियमों के तत्स्थानी थे और जो उत्तर प्रदेश सरकार के नियन्त्रण के अधीन सरकारी कर्मचारियों पर लागू होते थे, एतदद्वारा निरस्त किये जाते हैं:
किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि इस प्रकार निरस्त किये गये नियमों के अधीन जारी हुए किसी आदेश या की गयी किसी कार्यवाही के सम्बन्ध में यह समझा जायेगा कि वह आदेश या कार्यवाही इन नियमों के तत्स्थानी उपबन्धों के अधीन जारी किया गया था या की गयी थी।
Footnote
- विज्ञप्ति संख्या : 2367/2-बी-118-54, दिनांक 21 जुलाई, 1956 द्वारा प्रकाशित।
- विज्ञप्ति संख्या : 9/7/78-का-1, दिनांक 20 नवम्बर, 1980 द्वारा प्रतिस्थापित, जो उ.प्र. गजट के भाग 1-क में दिनांक 23 मार्च, 1981 को प्रकाशित (प्रभावी 23-3-1981)।
- अधिसूचना संख्या : 13/5 / 98 – टी0सी0-का0 -1-1998, दिनांक 17 अक्टूबर, 1998 द्वारा अन्तःस्थापित, जो उ.प्र.असाधारण गजट में दिनांक 17 अक्टूबर, 1999 को प्रकाशित (प्रभावी 17-10-1999)।
- अधिसूचना : 76/संख्या-13/5/98-का-1-2014, दिनांक 8 अगस्त, 2014 द्वारा अन्तःस्थापित।
- अधिसूचना संख्या : 9/6/74- कार्मिक-1, दिनांक 22 फरवरी, 1978 द्वारा अन्तःस्थापित।
- अधिसूचना संख्या 6450/11-B-152-57, दिनांक 11 मई, 1964 द्वारा नियम 5-क एवं नियम 5-ख अन्तःस्थापित।
- संख्या: 13/5/98-टी.सी.-का-1-1998, दिनांक 17 अक्टूबर, 1998 द्वारा प्रतिस्थापित।
- अधिसूचना संख्या: 9/1/76-कार्मिक-1, दिनांक 29 जुलाई, 1976 द्वारा अन्तःस्थापित।
- अधिसूचना संख्या : 9/7/76- कार्मिक-1, दिनांक 20 नवम्बर, 1980 द्वारा नियम 12 और 13 निकाल दिया गया, जो उ.प्र. गजट में दिनांक 23 मार्च, 1981 को प्रकाशित हुआ।
- अधिसूचना संख्या : 13/5/98- टी. सी.- का- 1-1998, दिनांक 17 अक्टूबर, 1998 द्वारा प्रतिस्थापित।
- अधिनियम संख्या 13/5/98-का-1-2002, दिनांक 9 अगस्त, 2002 द्वारा अन्तःस्थपित।
- अधिसूचना संख्या 9/7/78-का-1, दिनांक 20 नवम्बर, 1980 द्वारा प्रतिस्थापित, जो उत्तर प्रदेश गजट, भाग 1-क में दिनांक 28 मार्च, 1981 को प्रकाशित।
- अधिसूचना संख्या: 9/7/78- कार्मिक-1, दिनांक 20 नवम्बर, 1980 द्वारा प्रतिस्थापित।
- अधिसूचना संख्या: 9/7/78- कार्मिक-1, दिनांक 20 नवम्बर, 1980 द्वारा प्रतिस्थापित।
- अधिसूचना संख्या : 13/5/98-टी.सी.-का-1-1998, दिनांक 17 अक्टूबर, 1998 द्वारा प्रतिस्थापित।
- अधिसूचना संख्या : 13/5/98-टी.सी.-का-1-1998, दिनांक 17 अक्टूबर, 1998 द्वारा प्रतिस्थापित।
- विज्ञप्ति संख्या 1610/2-बी- 152 – 61 , दिनांक 13 अगस्त, 1960 द्वारा निरस्त।
- अधिसूचना संख्या 9/6/1974 -कार्मिक-1, दिनांक 27 जुलाई, 1976 द्वारा अन्तःस्थापित ।
- अधिसूचना संख्या : 9/7/78- कार्मिक-1, दिनांक 20 नवम्बर, 1980 द्वारा प्रतिस्थापित।