इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि मां की मौत के बाद बेटे विरासत में मिली पारिवारिक पेंशन पाने के हकदार हैं, लेकिन विसंगतियों पर सवाल उठाने का उन्हें कोई हक नहीं है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि मां की मौत के बाद बेटे विरासत में मिली पारिवारिक पेंशन पाने के हकदार हैं, लेकिन विसंगतियों पर सवाल उठाने का उन्हें कोई हक नहीं है। इस टिप्पणी संग न्यायमूर्ति अजित कुमार की अदालत ने प्रयागराज निवासी राहुल सिंह व सिद्धार्थ सिंह की ओर से दाखिल याचिका खारिज कर दी।

याचियों के पिता बिक्रीकर विभाग में सहायक उपयुक्त के रूप में तैनात थे। उनकी मौत के बाद पत्नी सुशीला सिंह को तत्कालीन सरकार ने असाधारण पेंशन देने का आदेश दिया, लेकिन उन्हें भुगतान कभी नहीं किया। वर्ष 2024 में सुशीला सिंह की मौत के बाद दोनों बेटों ने असाधारण पेंशन के रूप में पेंशन की गणना करने व बकाये का भुगतान करने की मांग की थी, लेकिन बिक्रीकर आयुक्त ने इन्कार कर दिया। कहा, मां ने जीवित रहते कभी पेंशन की विसंगतियों पर आपत्ति नहीं की।

इसके खिलाफ बेटों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अधिवक्ता शुभेंदु मिश्रा ने दलील दी कि याची मृतका के उत्तराधिकारी हैं। इसलिए उन्हें मां की पेंशन विसंगतियों पर आपत्ति उठाने का हक है। साथ ही वह सही पेंशन निर्धारण के बाद बकाए का भुगतान पाने के भी अधिकारी हैं। कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। कहा, अपने जीवनकाल में पेंशन की गणना पर मां ने कभी कोई आपत्ति नहीं उठाई है तो बेटे उनकी मौत के बाद पेंशन की विसंगतियों पर सवाल नहीं उठा सकते और न ही उसमें सुधार की मांग कर सकते हैं। हालांकि, वे विरासत के रूप में मिली मां की पेंशन का बकाया पाने का हकदार हो सकते हैं।